नज़्म
सांस आती रही सांस जाती रही
हर घड़ी याद तेरी सताती रही
मैं तड़फता रहा दिन गुजरते रहे
ज़ख्म मेरे हरे थे उभरते रहे
गमके बादल गरज के बरसते रहे
याद में तेरी जीते ओ मरते रहे
ज़िन्दगी चैन से तो बिताई नहीं
आपको याद मेरी भी आई नहीं
मैं निभाता रहा हर वचन पे वचन
हो गया देख के आपको मैं मगन
आ गए आ गए आज प्यारे सजन
देख के हो गए ये सजल दो नयन
टूट कर प्रेम तुमसे है मैंने किया
जिंदगी को भी मैंने हैं ऐसे जिया
जिस्म से जान मेरी ये जाती नहीं
वेवफा मौत मेरी है ,आती नहीं
— संजय कुमार गिरि