कविता

सावन आ गया रे

चढ़ आईं घोर घटाएं काली काली।
फूलों के संग झूम रही डाली-डाली।
अंधेरा छा गया रे।
सावन आ गया रे।
सावन भादों बारिश गर्मी शीतलता।
ऋतुयों की अंगड़ाई में है पावनता।
बारिश पा गया रे।
सावन आ गया रे।
तपश मनोरम मोहिक उमस मुग्धकारी।
जानें बच्चे बूढ़े सब नर और नारी।
मौसम गा गया रे।
सावन आ गया रे।
ठंडी लस्सी भीतर मक्खन बहता है।
पूए खीर जलेबी को दिल करता है।
मन मचला गया रे।
सावन आ गया रे।
कोयल मोर पपीहे रस रंग ठिठोली।
मंत्रमुग्ध सुरभियां मलहार में बोली।
राग सुना गया रे।
सावन आ गया रे।
बहुरंगी सृजन प्रतिबिंब घटाएं हैं।
हिंडोले अम्बर छूते तेज़ हवाएं हैं।
दिल बहला गया रे।
सावन आ गया रे।
इन्द्रधनुष करे है अठखेली सरगोशी।
धरत गगन दरम्यां सुशोभित मदहोशी।
दर्द बसा गया रे।
सावन आ गया रे।
हक्क सच्च और इन्साफ में बहता जाएगा।
चहूं ओर खुशहाली करता जाएगा।
क्रान्ति पा गया रे।
सावन आ गया रे।
अपने फ़र्ज़ों के लिए जीना आता है।
‘बालम’ अमृत-विष भी पीना आता है।
हक्क दिलवा गया रे।
सावन आ गया रे।

— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409