स्त्री
मर्म है आंखों में,
एक राज छुपाए रखा है।
स्त्री ने अपने आँचल में,
स्त्री ने अपने आँचल में,
संसार बसाए रखा है।
शिशु को पालने में,
शिशु को पालने में,
ममता की मूरत बन जाती,
ओर मनचलों के लिए,
ओर मनचलों के लिए,
वही कहलाती छाती।
अंचल के तले छुपाकर,
अंचल के तले छुपाकर,
जिस पुरूष को दूध पिलाती,
उसी पुरूष जाती के हाथों,
उसी पुरूष जाती के हाथों,
एक दिन है लुट जाती,
भर भर झोली अपनी,
भर भर झोली अपनी,
ममता जिसपर बरसाती।
बिन कारण उसके,
बिन कारण उसके,
लब्जों चरित्रहीन कहलाती।
हिरनी सी चंचल,
हिरनी सी चंचल,
जब मन मे है समाती।
एक प्रेम की परछाई वो,
एक प्रेम की परछाई वो,
उसके लिए बन जाती।
सुंदर रूप और काया से,
सुंदर रूप और काया से,
जब भी है सुहाती।
लांछन और फवतियो से,
लांछन और फवतियो से,
रोज डरायी जाती
काजल बिंदी लाली,
होंठों पर वो लगाती।
मनचाहा तो उनकी,
मनचाहा तो उनकी,
बन जाती है थाती।
— अनीता विश्वकर्मा