चमकते हैं जैसे सितारे – चाँद की चमक से
नूर अैसा ही झलकता है – आप के चेहरे से कोई
खेल यह मोहब्बत का – बुहत ही अजीब खेल है
चुंगल से इस के – बच कर निकला निकला नही कोई
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खेल यह हम ने भी खेला है – साथ अपने जज़बात के
वजूद अैसा भिख़रा हमारा – संभल ही ना पाए इस से
नाम ना हो तुमहारा – किसी भी दासतान मे मेरी
कहानी अैसी ज़िनदगी की – लिखी ही नही में ने कोई
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पथर था मैं – शीशा आप ने बना दिया मुझे आप ने
क़ाबल देखने के इस दुनिया में – बना दिया आप ने
टूटे हुए शीशे को मगर – घर में रखता नही कोई
निकल आता है जब चांद – चराग़ जलता नही कोई
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सबूत हर बात का – आज मांगती है दुनिया
भरोसा किसी को किसी पर – रहा ही नही कोई
यक़ीन आप भी तो नही कररे – हमारी बात पर
एतबार अब किसी पर – करता नही है कोई
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बुहत कुछ कर गुज़रता मैं – अपनी अनाओं के जोश में — मदन —
मगर परखा जिसे मैं ने – आप हैं नही दूसरा कोई
हंसते हुए चेहरे ही बनते हैं – ज़ीनत ज़िनदगी की
रोने वालों के लिये – किसी के पास फ़ुरसत नही कोई