लघुकथा

नयी राह

बून्द बून्द रिमझिम बारिश।नन्हीं नन्हीं बुंदों की सरगम से समां सुहाना हो गया था।सुहासी धरा आनंदित हो ,मखमली दुशाला ओढ़े इतरा रही हो जैसे।रंग बिरंगे फूल,घासफुस,पत्तों से बनी मनमोहक रंगोली।अद्भुत नजारा चहुँ ओर।किलबिल किलबिल करते विहंग,नीले गगन में विचरते मेह।धरा को तृप्त होता देख पुलकित हो रहे थे।बूंदों से प्यार बरसाकर उल्लसित हो रहे थे।नवयौवना सी सजीली खिली प्रकृति।ताजगी,उल्हास,महक,चहक।झरोखे से झांकते नयनरम्य दृश्य देख उसका मनमयूर हरखित हो झुमने लगा। स्नेहा का मन न जाने कब अतीत के सुनहरे पलों में खो गया,उसे पता ही न चला।
जीवन के अलमस्त पल।सौरभ की बांहों में सुरभित, आन्दोलित,उन्मादित,पुलकित पल हर पल ,प्रेम सुधा बरसाते,जीवन का मधुर राग आलापते।सहेजकर रखा हैं उसने एक एक पल।जीवन कितना सुंदर था तब।हाथों में हाथ धरे पानी में पैर डुबोये नयनों से होती थी बातें।प्रेमिल स्पर्श की अद्भुत अनुभूति।अपनेपन की,चाहत की रेशम डोर से बंधा जीवन।धूप-छांव,खुशी-गम,पतझड़-बहार,सदा खिलखिलाते रहना,अपनी मस्ती में मुस्कुराते जीना, सौरभ ने सिखाया था उसे।सफलता के नित नये पायदान चूमते जीवन की रेल सुचारू चल रही थी,कि अचानक से आये झंझावात ने उसके घरौंदे को तहसनहस कर दिया।महामारी सौरभ को उससे छीन  ले गयी।चारो ओर हाहाकार मचा हुआ था।घर में कैद,हतबल मानवमन।अपने सगे संबंधी,पड़ोसी यहां तक कि खून के रिश्ते की डोर भी चरमरा गयी थी।बेजान सी वह अकेलेपन से उबरने का प्रयास कर रही थी।सौरभ,सौरभ,सौरभ।उसकी जिन्दगी,उसका मन कहाँ था उसके पास।रुआंसी सी वह छटपटा कर रह जाती।आंखें आंसू बहाकर थक गयी थी।नीरस ,हताश,अवसादग्रस्त हो गया था मन।
                         दूरदर्शन पर क्या देखु?सहज ही वह खबरें सुनने लगी।कोरोना महामारी ने कितनी जानें ली,लेखाजोखा चल रहा था।अचानक रोने की आवाज सुन हृदय विचलित हुआ।अपने माता पिता को खो कर रो रहा था नन्हा बालक। नन्हें बालक का  प्रलाप  उसे भीतर तक हिला गया।सोशल मीडिया पर उसका सर्कल बहुत बड़ा था।भयावह माहौल में उस अनाथ बच्चे के लिए माता पिता ढूंढने में वह सफल रही।जटिल कानूनी प्रक्रिया को शिथिल करने की अपील कर उसने सब को नई राह दिखाई।जीने का मकसद मिला था उसे।नया संसार बसाने की चुनौती।बिछड़ों की नई दुनिया बसाकर,सदाबहार खुशियों से महकाना,जीवन को  नया अर्थ देते वह बढ़ती रही।बच्चों से जो बिछड़े उन्हें अपने दुलारे मिल गए।जो अनाथ हुए,उन्हें अपने मिल गए।औरों की दुनिया बसाते बसाते उसकी जिंदगी सजती गयी।सौरभ की स्मृतियों संग,समाज सेवा का कठिन कार्य करते आज वह संतुष्ट हैं।जैसे काले काले मेघ तप्त मन पर स्नेहिल फुहारें बरसा गए हो।जीने की उमंग जगाते।तृप्ति,संतुष्टि का अहसास कराते।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८