हिंदी समाचार
हिन्दी या हिंदी शब्द भारतीय भाषाओं के शब्दकोश नि:सृत नहीं है । वैसे हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान नामक शब्द संभवत: अरबियों या ईरानियों की देन है । व्यापार या लूटने के उद्देश्य ऐसे विदेशी आए और निवास सिंधु नदी किनारे रखे ! ‘सिंधु’ के अपभ्रंश हिन्दू हो या कपास या इंडस से हिंदस हो और इन्हीं सब से गड्ड-मड्ड होकर हिन्दू व हिंदी बनी हो, सुस्पष्ट नहीं है ! वैसे अमीर खुसरो की पहेली में शायद हिंदवी शब्द आयी. हिंदी को आगे बढ़ाने में सिर्फ पत्रिकाएँ ही नहीं हिंदी समाचार-पत्रों व अखबारों व Newspapers ने भी महती भूमिका निभाई है । इन अखबारों में दैनिक, साप्ताहिक और पाक्षिक पत्रों की महती भूमिका रही है । चूँकि पत्रिकाएँ मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, वार्षिकी और पाक्षिक भी होती है, किंतु उनमें सीमित पृष्ठों के प्रकाशन के कारण कम ही लेखकों को जगह मिल पाती है ! समाचार पत्रों में मूलत: विविधता लिए समाचार प्रकाशित होती हैं, किंतु उनमें नियमितरूप से फीचर भी प्रकाशित होती है, इसलिए भाषाओं की विकास-यात्रा में अखबारों की उल्लेखनीय भूमिका है । कुछ हिंदी अखबारों के नाम, जिनमें अधिकांश तो वर्त्तमान में भी प्रकाशित हो रही हैं, यथा- 1. हिंदुस्तान, 2. दैनिक जागरण, 3. आज, 4. आर्यावर्त्त, 5. राष्ट्रीय सहारा, 6. नवभारत टाइम्स, 7. जनसत्ता, 8. हरिभूमि, 9. पंजाब केसरी, 10. प्रभात खबर, 11. राँची एक्सप्रेस, 12. हजारीबाग टाइम्स, 13. सेंटिनल, 14. अमर उजाला, 15. सन्मार्ग, 16. विश्वमित्र, 17. सागर झील, 18. नव बिहार, 19. सीमांचल टाइम्स, 20. प्रदीप, 21. मिलाप, 22. वीर अर्जुन, 23. अमृत प्रभात, 24. स्वतंत्र चेतना, 25. पायनियर, 26. स्वतंत्र भारत, 27. जन संदेश, 28. दलित मंच, 29. झारखंड जागरण, 30. जनमुख, 31. पाटलिपुत्र टाइम्स, 32. छपते-छपते, 33. राहत टाइम्स, 34. संगम, 35. उत्तरांचल टाइम्स, 36. जबलपुर एक्सप्रेस, 37. नवभारत, 38. प्रताप, 39. दैनिक प्रभात, 40. दैनिक पूर्वोदय, 41. छत्तीसगढ़ समाचार, 42. यशोभूमि, 43. महाराष्ट्र समाचार, 44. अमृत वर्षा, 45. लोकमत, 46. लोकप्रहरी, 47. सांध्य टाइम्स, 48. निष्पक्ष प्रतिदिन, 49. दैनिक भास्कर, 50. नई दुनिया, 51. राजस्थान पत्रिका, 52. सीमांचल प्रहरी, 53. पूर्वांचल प्रहरी, 54. राष्ट्रीय हलचल, 55. सोनभद्र एक्सप्रेस, 56. आमख्याल, 57. सहारा समय, 58. शोषित दर्पण, 59. अभिनव पथ, 60. रामजन्मभूमि संदेश, 61. युवा प्रयास, 62. अक्षर भारत, 63. चौथा खंभा, 64. अहवाल-ए-मिशन, 65. रोजगार समाचार, 66. हरियाणा प्रदीप, 67. जैमिनी अकादमी, 68. कोसी टाइम्स, 69. टाटा टाइम्स, 70. हिंदी पॉयनियर, 71. हिंदी सामना, 72. तत्वबोध, 73. अम्बेडकर समाचार, 74. प्रयुक्ति, 75. उगता भारत, 76. स्वतंत्र भारत इत्यादि।
मेरे ही एक लेख से, यथा- भारतीय आज़ादी से पूर्व हिंदी स्वतंत्रता प्राप्तार्थ एक आंदोलन के रूप में था, आज की हिंदी स्वयं में एक त्रासदी है । तब पूरे देश को हिंदी ने मिलाया था , आज हम चायवाले की हिंदी, खोमचेवाले की हिंदी, गोलगप्पेवाले की हिंदी के स्थायी और परिष्कृत रूप हो गए हैं । हमें ‘नेकटाई’ वाले हिंदी के रूप में कोई नहीं जानते हैं । हम अभी भी जनरल बोगी के यात्री हैं… कुंठाग्रस्त और अँग्रेजी कमिनाई के वितर । क्लिष्ट हिंदी में पंडित कहाओगे, सब्जीफरोशी उर्दू के बनिस्पत कोइरीमार्का हिंदी के प्रति अंग्रेजीदाँ लोग नाक-भौं सिकोड़ते हैं ! हिंदी से असमझ लोग वैसे ही हैं, जैसे कोई नर्स की स्टैंडर्डमार्का को देख उन्हें माँ कह उठते हैं । आज़ादी से पहले हिंदी के लिए कोई समस्या नहीं थी, आज़ादी के बाद हिंदी की कमर पर वार उन प्रांतों ने ही किया, जिनके आग्रह पर वहाँ हिंदी प्रचारिणी सभा गया था – मद्रास हिंदी सोसाइटी, असम हिंदी प्रचार सभा, वर्धा हिंदी प्रचार समिति, बंगाल हिंदी एसोसिएशन, केरल हिंदी प्रचार सभा इत्यादि । मेरा मत है, भारत की 80 फ़ीसदी आबादी किसी न किसी प्रकार या तो हिंदी से जुड़े हैं या हिंदी अथवा सतभतारी हिंदी जरूर जानते हैं , बावजूद 80 फ़ीसदी कार्यालयों में हिंदी में कार्य नहीं होते हैं । अब तो हिंदी के अंग एकतरफ ब्रज, अवधी, तो मैथिली, भोजपुरी, मगही, बज्जिका इत्यादि अलग भाषा बनने को लामबंदी किए हैं । संविधान की 8 वीं अनुसूची की भाषा भी हिंदी के लिए खतरा है । हमें हिंदी के लिए खतरा नामवर सिंहों से भी है, जो सिर्फ नाम बर्बर हैं या नाम गड़बड़ हैं । हिंदी में मोती चुगते ‘हंस’ निकालने वाले भी हिंदी के लिए भला नहीं सोचते हैं । ये सरकारी केंद्रीय हिंदी संस्थान भी मेरे शोध-शब्द ‘श्री’ को हाशिये में डाल दिए हैं । 10 सालों की मेहनत के बाद लिखा 2 करोड़ से ऊपर तरीके से लिखा ‘श्री’ और ‘हिंदी का पहला ध्वनि व्याकरण’ को हिंदी गलित विद्वानों ने एतदर्थ इसके लिए अपने विधर्मी रुख अपनाये रखा । … और हिंदी में भी फॉरवर्ड हिंदी है, तो बैकवर्ड हिंदी ! अब तो ‘नईवाली हिंदी’ भी मग़ज़ में आ चढ़ी है. अब हिंदी में सिर्फ देवनागरी लिपि ही रह गयी है, जबकि भाषाई विवेक खो चुकी है । उर्दू, अंग्रेजी, बांग्ला, गुजराती समेत कई भाषाओं को हिंदी खुद में न केवल समेटी है, अपितु सहेजी भी है । एक ऑनलाइन पत्रिका प्रवक्ता.कॉम में प्रकाशित है कि हिंगलिश तो हिन्दी में इंगलिश की इस मिलावट से हिन्दी विकृत और प्राण हीन होने लगी। एक ओर विकृतियाँ बिना सोचे समझे दूसरी भाषा के शब्द लेने से आती हैं और दूसरी ओर शब्दों के अव्यवाहरिक अनुवाद से भी आती हैं। कुछ नई चीज़े या उपकरण बनते हैं तो उनके अजीबोग़रीब हिन्दी अनुवाद कर दिये जाते हैं जो व्यावाहरिक नहीं होते, हास्यास्पद लगते हैं। भाषा का मज़ाक उड़ाना भी सही नहीं है। अब ट्रेन को कोई लौह पथ गामिनी तो कहेगा नहीं, इंटरनैट को भी अंतर्जाल कहना न सुविधाजनक है न व्यावहारिक। इसलियें ट्रेन, बस, कार,कम्पूटर, लैपटौप जैसे शब्दों को हम वैसे का वैसा ही देवनागरी मे लिख सकते हैं, इनके हिन्दी अनुवाद खोजना बिलकुल ज़रूरी नहीं है।report को रपट लिखना technique को तकनीक लिखना भी हिन्दी मे स्वीकार हो चुका है। स्यूसाइड या मर्डर……… लव ट्राई ऐंगल ..सरकार प्रैशर मे….. जैसे वाक्याँश पढकर लगता है कि क्या आत्महत्या, क़त्ल, प्रेम त्रिकोण या दबाव कठिन शब्द हैं जिनके लियें इंगलिश शब्द लेने पड़े! क्या हिन्दी का अख़बार पढ़ने वाला पाठक ये शब्द नहीं जानता ! यदि सिनेमा की बात करें तो यह माध्यम पूरी तरह व्यावसायिक होने के कारण इसमे भाषा की मर्यादा या शब्दों के चयन का केवल यही महत्व है कि वह जनमानस को पसन्द आये। गाने भी ‘साड़ी के फाल सा मैच किया रे, कभी छोड़ दिया रे कभी कैच किया रे’ जैसे लिख दिये जाते हैं, जिनकी तुकबन्दी और पैर थिरकने वाला संगीत जनता को भाता है। यहाँ भाषा से ज़्यादा तथ्य समझना ज़रूरी है,उदाहरण के लियें विज्ञान की पुस्तक मे जीवाश्म ईंधन लिखा है, ठीक ठाक हिन्दी जानने वाला भी शायद सोच मे पड़ जाये कि यह क्या चीज़ है। दरअसल यह fossil fuel का हिन्दी अनुवाद है ऐसे मे फौसिल ईंधन लिखा जा सकता है या जीवाश्म ईंधन के साथ कोष्टक मे fossil fuel लिखा जाना चाहिये। हिन्दी मे energy को ऊर्जा और heat को ऊष्मा कहते हैं।