ख्वाहिश
जब ख़्वाब देखा हो कुछ अच्छा करने का,, तब क्या दिन या रात देखना।
भले ही सारे नजारे सो गए हो लेकिन मेरा दावा है अभी भी सच्चे प्रतिभागियों की कलम में तेज रफ़्तार होगी।
कोई इतिहास से बाते कर रहा होगा तो कोई ख़ुद इतिहास में अपना नाम दर्ज़ कराने को बेताब होगा। कोई भूगोल से खेल रहा होगा तो कोई भारतीय संविधान में खोया होगा,, तो कोई अर्थशास्त्र के साथ आंख मिचौली कर रहा होगा ।
कोई टॉपिक छूट ना जाएं इसलिए चाय के साथ भीं किताबें आंखों के सामने हैं,, तो कोई अपने मित्र को बोलता होगा,,, ब्रश-चाय बाद में पहले आंसर राइटिंग तो कर लूं और अगर कोई ये बोल दे कि भाई/बहन तुम तो टॉप करोंगे तो सामने कहेंगे ऐसा कुछ नहीं, मैं तो बस थोड़ी बहुत ही पढाई कर पाता हूं/पाती हूं,, मैं कहा।
पर ये लफ्ज़ सुनकर जो खुशी होती हैं ना वो शब्दों में बयां नहीं की जा सकती।
दोस्तों क्या गज़ब की दुनियां होती हैं ना, हम सबकी खुशियां किताबों में ढूंढ लेते हैं तो सारा अपमान,तंगी,हालात और सब परेशानियां उन्ही किताबों में छुपा लेते हैं।
एक उम्मीद है, हौसला हैं कि एक दिन सब कुछ बदल जाएगा। अपनी भीं ज़िंदगी रंगीन हो जाएंगी,समस्या के बादल हमेशा के लिए छट जाएंगे।
जो लोग आज हम पर हँसते हैं उन्हें हँसने दो यारों उनकी खुशियां कम ना करों। कैसे बताओंगे उन्हें कि वो जिंदगी ही क्या जो दूसरों के लिए ना जी जाए और दूसरों के होठों पर मुस्कान लाने से पहले ख़ुद की पलकों को भिगोना पड़ता है।
हम सब रातों में जागते हैं बदलाव के लिए,समाज में कुछ योगदान कर सके,भूखों को भोजन दे सकें, उन बच्चों की पढ़ाई के लिए जो मजबूर होकर मज़दूर हों गए।
जो बुरे रास्तों पर चल पड़े हैं उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए, उनकी ख्वाहिशों को अपनी ख्वाहिश बनाकर जीते हैं।हम और इन सबकों पूरा करने के लिए प्रतियोगी जैसे प्रभावशाली मंच से बेहतर क्या होगा।
इस बात की फिक्र छोड़ों, कोई क्या कहता है क्योंकी ये दुनियां आपके रूतबे को सलाम करती हैं,आपके संघर्ष के मूल्य ये क्या समझेंगे। इसलिए लगे रहिए बेफिक्री से। आपकी मेहनत से जो परिणामों के फूल खिलेंगे उनकी महक फिजाओं में गूंजती रहेंगी। ना दिन देखिए ना रात,,,, पानी की प्यास सा,भोजन की भूख सा अपने लक्ष्य के प्रति भीं बेताब रहिए।सफलता तुम्हारी गोदी में स्वयं आ बैठेगी।
किसी ने क्या ख़ूब कहा है कि
आसानी से मिल सकें उसकी ख्वाहिश किसे हैं।
ज़िद तो उसकी हैं जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं।।
ज़िद इतनी पक्की है कि जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं।
देश व समाज के प्रति सरोकार और संवेदना का भाव है तो जुट जाइए अपने सपनों को पंख लगाने। उम्मीदों का आसमां आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
सविता जे राजपुरोहित