गूँगा प्यार
नहीं वह मेरा रहा – न मैं उसकी रही।
पर अलग होकर भी – हम हमारे रहे।।
मन की तूलिका से खींची,
उसकी धुँधली छवि देख,
आज भी आ रही हैं,
वे यादें,
टूटे गये शीशे के टुकड़ों समान,
टूटी-फ़ूटी यादें,
एक-ब-एक,
सिलसिलेवार।
फिर,
लहरों की फ़ितरत ग्रहण करके,
वापस चली जाती हैं,
गूँगे प्यार की,
वे यादें।
मन के समुन्दर में,
दबे पाँवों में,
चुपचाप।
आज भी बस,
मुझे यही कहनी है।
नहीं वह मेरा रहा, न मैं उसकी रही।
पर अलग होकर भी, हम हमारे रहे।।
— कलणि वि. पनागाॅड