मैं नहीं हूँ बेशरम !
एक मित्र है
उनकी शादी है,
थे पहले
बिखरे-बिखरे;
और कल से ही
वे मुझसे,
हैं उखड़े-उखड़े !
एक शिक्षक है,
जिसे देशहित की
बातों में हमेशा ही
उनकी साजिश,
प्रीप्लानिंग
नज़र आती है!
एक दीदा है,
फ्री मिले तो
बालू भी
फाँक सकती है,
सिरफ़ काली
और गोल मिर्च की
चाय को छोड़कर !
एक शिक्षिका है,
जो मन में
दूसरे के प्रति
टोकरी भर
द्वेष, घृणा,
निंदा, वैर,
ईर्ष्या, डाह का
भाव रखती हैं,
किन्तु पूजा भी
करती हैं!
‘बर्थडे गिफ़्ट’ में
मिली ‘बेशरम’,
पर मैं नहीं हूँ बेशरम;
अपितु
जिज्ञासा रहती है
कि हर विषयों को
निकटता से जानूँ,
छुऊँ,
आलिंगन करूँ!
रंग डारिये,
रंगभेद
ना करिए;
का गोरे,
का कारे !