विज्ञान के दोहे
ख़ूब रचा विज्ञान ने,सुविधा का संसार।
जीवन में सुख भर गया,दिखता जीवन-सार।।
आना-जाना,परिवहन,लेन-देन,संचार।
नए सभी कुछ हो गए,शिक्षा अरु व्यापार।।
दूर बैठ संवाद हो,चित्र,वीडियो संग।
सचमुच में विज्ञान ने,बिखराये नव रंग।।
जीवन हरसाने लगा,विज्ञानी सौगात।
पर यंत्रों से हो गए,मानव के जज़्बात।।
लाइव टेलीकास्ट है,एसी,फ्रिज,जलयान।
वायुयान,बिजली सुखद,मोबाइल की शान।।
पर इंसां आराममय,श्रम से है वह दूर।
रोग अनेकों आ गए,दूर हो गया नूर।।
बम,तोपें विध्वंसमय,है भय का परिवेश।
करें मिसाइल राज अब,दबते दुर्बल देश।।
काश !रहे बस दिव्यता,हो बस मंगलगान।
रखें सभी संवेदना,जय हो,हे ! विज्ञान।।
आया है विज्ञान ले,मानव का कल्याण।
क्यों फिर बम हरते यहां,इंसां के तो प्राण।।
यही कामना सुख रचें,नित ही आविष्कार।
फैलाएं आलोक वे,हर कर के अँधियार।।
— प्रो.(डॉ) शरद नारायण खरे