कविता

” धूप के टुकड़े “

पास से
देखो तनिक अब,
ताल का मन।
सत्य दिखलाने
से देखो
डर रहे दर्पन।
कंकड़ों के
नाम से ही
ये लगे कंपने।
वो रहे हैं
झील में ही
आज सब सपने।
गिर रहे हैं
टूटकर अब
धूप के टुकड़े।
रह गए
सब देखते
बस मुट्ठियां जकड़े।
और बढ़ते
हाथ फिर
उनको लगे कसने।
आंसुओं में
भीगकर यह
शाम कुछ कहती।
स्याह रातों
से अकेली
हारती फिरती।
जीतने की
चाह में ही
फिर लगी लड़ने।
— पंकज मिश्र ‘अटल’

पंकज मिश्र 'अटल'

जन्म- 25 जून 1967 स्थाई निवास- शाहजहांपुर ( उत्तर प्रदेश) लेखन विधाएं- अतुकान्त कविता, नवगीत,बाल-साहित्य, समीक्षात्मक लेख,साक्षात्कार। प्रकाशन- देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, ई-पत्रिकाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन जारी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न समन्वित संकलनों में भी रचनाओं का प्रकाशन। प्रसारण- देश के विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों पर रचना पाठ और प्रसारण। प्रकाशित कृतियां- अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित- 1. चेहरों के पार भी ( लंबी कविता,1990) 2. नए समर के लिए ( कविता,2001) 3. बोलना सख्त मना है ( नवगीत,2016) 4. साक्षात्कार:संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर के हिंदी रचना धर्मियों से साक्षात्कार,2020) संपादन- "आवाज़" फोल्डर अनियतकालिक और अव्यावसायिक तौर पर संपादन और प्रकाशन। सम्प्रति- जवाहर नवोदय विद्यालय सरभोग, बरपेटा आसाम में अध्यापन कार्य। मोबाइल नंबर- 7905903204 ईमेल- [email protected]