गुरूद्वारा माता सुन्दरी जी
गुरदासपुर से लगभग छह किलोमीटर दूर गांव बहादुर के बाहरी ओर ‘बेट क्षेत्र’ में स्थित है गुरूद्वारा माता सुन्दरी जी। इस विख्यात एतिहासिक गुरूद्वारे का ज़िक्र, यहां इतिहास में अंकित है, वहां भाई वीर सिंह जी के नावल सुन्दरी में माता सुन्दरी जी की जीवन-शैली तथा अंतिम ज़िंदगी तक का संघर्ष बहुत ही भव्य एव कलात्मक पात्र में पेश किया गया है।
माता सुन्दरी जी के स्वभाव की विनम्रता, दृढ़ संकल्प, सेवा भावना, आत्म बल, कुर्बानी की भावना और दया का निर्झर बहता है। उनके स्वभाव में बदलाव (परिवर्तन) तब आया जब उन्हों ने अमृत पान किया।
यहां माता सुन्दरी जी का गुरूद्वारा है, वहां लगभग 17वीं सदी के करीब दीर्घ छम्ब (आरण्य) होता था। यहां पर राम सिद्ध की जगह थी। घने वृक्षों का खतरनाक जंगल मौजूद था। धनाढय एवं प्रशासनिक लोग इधर शिकार खेलने आते थे। उस समय मुगलों तुर्कों के राजदरबार तथा हकूमताधीन चल रहे प्रशासन में अनैतिक जुनून तथा धर्मन्धता का कहर बुलंदिया छूह रहा था। विरोधी (विपरीत) धर्मों से घृणा, शोषण, ज्यादतियां और जनूनी अनैतिक मूल्यों का बोल-बाला था। ज़बरदस्ती खूबसूरत महिलाओं को उठाकर ले जाना, रोए खड़े कर देने वाली सजाएं। उस समय के ज़ालिम हाक़म (सत्ताधारी) के आगे किसी की क्या जुररत थी कि कोई बोल दे, जुबान से कोई शब्द निकाले। विपरीत धर्म को बेइज्जत करना आम बात थी। इस समस्त हालातों का मुकाबला करने के लिए ख़ालसे (सिंह) की जोश एवं होषमयी जुझारू सैना ने उस समय के तुर्की हाक़मों से लोहा लिया।
माता सुन्दरी जी के जीवन बारे भाई वीर सिंह जी के नावल ‘सुन्दरी’ से लिए गए कुछ अंश। उस समय के एक धनाढय ‘हिन्दू’ शामां की बेटी, जिस का नाम सुरोस्ती था। उसकी शादी को कुछ दिन ही हुए थे। सुरोस्ती की आयु उस समय 18 वर्ष थी। सुरोस्ती की सुन्दरता के चर्चे दूर-दूर तक थे। उसकी खूबसूरती को देखते हुए उसको मुगल उठाकर ले जाते हैं। शामां ने अपनी बेटी को छुड़ाने के लिए कई हाथ पैर मारे। सोना-चांदी, धन-दौलत देने के लिए कहा परन्तु मुगल न मानें। आखि़र एक सिंह बलवंत सिंह ने उसको छुड़ाने के लिए योजना बनाई। हाक़मों की कैद में सुरोस्ती तथा उसका भाई भी था। वे एक महीना बंद रहे। आखि़र स. शाम सिंह तथा बलवंत सिंह के नेतृत्व में सिंहों (ख़ालसे) की लड़ाई मुगलों से हुई और सुरोस्ती तथा उसके भाई को छुड़वा लिया गया।
उस समय सिंहों ने बहन सुरोस्ती को बहुत समझाया कि वह अपने ससुर घर अपने पति के पास चली जाए। अपनी जिंदगी को आराम से बिताओ परन्तु सुरोस्ती ने अपना मन बना लिया कि, ‘जिन भाईयों ने जान हथेली पर रखकर मेरी जान बचाई है, रहती जिंदगी उनकी सेवा में गुजारेगी।’ बहुत समझाने के बावजूद वह न मानी तो सं शाम सिंह ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब से सुरोस्ती का नाम ‘सुन्दर कौर’ रख दिया जो माता सुन्दरी के नाम पर प्रसिद्ध हुआ।
अब बहन सुन्दरी लंगर की सेवा करती। भजन वाणी, नित्य नेम उसके जीवन का अंग बन गए। भाईयों की सेवा में मग्न हो गई। वह लंगर का सामान खरीदने के लिए समीप के गांव में भी जाती। कठिन परिश्रम, सेवा भाव एवं गुरूबाणी-श्रद्ध उसके तन-मन एवं रूह से एकाग्र हो चुकी थी।
उस समय के हाक़म लखपत राए ने ज़ुल्म बढ़ा रखा था। लखपत राय का छोटा भाई इस क्षेत्र का सत्ताधारी था। जिसका नाम जसपत राय था। ख़ालसे ने एक दीर्घ लड़ाई के दौरान जसपत राय को मौत की नींद सुला दिया। भाई का बदला लेने के लिए लखपत राय ने इस छम्ब के जंगलमयी क्षेत्र में ख़ालसे के लोहमयी किले को घेर लिया। भंयकर युद्ध हुआ- इस दौरान बहन सुन्दरी, ज़ख्मी ख़ालसे की सेवा करती थी तथा और कार्य भी करती थी।
सिंह काहनूवान के घनें जंगल में परोक्ष हो जाते, दुश्मन के हाथ न आते। लखपत ने जंगल को चारों ओर से घेर कर आग लगा दी। उसके पास एक लाख के करीब पैदल सैनिक तथा तोपखाना था। उस भयंकर युद्ध में लगभग बीस हजार के करीब सिंह शहीद हुए। सिंहों के शहीद होने की संख्या अंदाज़न है। इसी दौरान ही बीबी सुन्दरी भी ज़ख्मी हो गई। उसने कई मुगलों के दांत खट्टे किए। बिजला सिंह तथा माता धर्म कौर ने ज़ख्मी सुन्दरी की बहुत सेवा की परन्तु बीबी सुन्दरी जी के जिस्म पर ज़ख्म गहरे थे।
उस समय के महान आगु सर्व श्री सरदार करोढ़ा सिंह, हरि सिंह, बाबा दीप सिंह जी शहीद, नवाब कपूर सिंह, मुख्खा सिंह, जस्सा सिंह, जय सिंह, चढ़त सिंह, गुरदयाल सिंह, हीरा सिंह, गुरबख्श सिंह, शाम सिंह तथा बलवंत सिंह इत्यादि ने शहीदियां प्राप्त की। कोई भी सिंह ज़िंदा (जीवित) लखपत राय के हाथ न लगा, वह मायूस वापिस गया। उस लड़ाई को छोटा घल्लूघारा भी कहते हैं।
आखि़र में बीबी सुन्दरी जी ने पाठ किया- प्रसाद लिया तथा कुछ समय के बाद शहीदी प्राप्त कर ली। एक महान नारी उस वाहेगुरू (परमात्मा) के हुक्म मुताबिक ख़ालसे की सेवा करती हुई, कंधे से कंधा मिलाकर साथ देती हुई उस वाहेगुरू के चरणों में लीन हो गई। इस महान नारी बीबी सुन्दरी को रहती दुनिया तक याद रखा जाएगा। प्रसिद्ध नावल लेखक भाई वीर सिंह ने ‘सुन्दरी’ नावल लिखकर सुन्दरी को अमर कर दिया है। इस स्थान पर आजकल कई धार्मिक मेले श्रद्धा से लगते हैं और देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस गुरूद्वारे के वर्तमान अध्यक्ष हैंः सूबेदार गुरबचन सिंह, नया पिण्ड, गुरदासपुर (पंजाब)।
— बलविन्दर ‘बालम’