हाइकु/सेदोका

ताँका छँद

सृजक आज
क्या सृजन करता
कैसे समझें
बेसिर पैर बातें
बस पन्ने रंगता।
***
घोर निराशा
मन में व्याप्त है
आखिर कैसा
समय आ गया है
आज के समाज में।
***
परिवर्तन
होकर ही रहेगा
संतोष रखो
बस कर्म अपना
अनवरत करो

*सुधीर श्रीवास्तव

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