सत्यबोध और तथ्यबोध के प्रिय कवि श्री विनोद कुमार
“मिथ्या प्यार मिलेगा
जिस्म को वो नोचेगा
कान्हा नकली आएगा
बाँसुरी बजाएगा
राधा रानी को फँसाकर
जिस्म लूट भाग जाएगा।”
इसी अंक में प्रकाशित उनकी अन्य कविता ‘रंग दे चुनरी’ का कवितांश तो देखिए जरा-
“ये चुनरी तो कान्हा का
चितचोर मेरे साँवरे का
मेरे साँवरे को बुला दो ना
हाथ में मेहँदी लगा दो ना !”
वाकई में विनोद जी की कविताएँ दिलस्पर्शन से मीलों आगे बढ़कर मर्मस्पर्शन लिए हैं ! सहित्यनामा, मई 2021 की पहली, दूसरी और तीसरी कविता के कवि विनोद जी ही हैं। वे कटिहार, बिहार के एक विद्यालय में ‘बिहार राज्य शिक्षक पुरस्कार’ से पुरस्कृत प्रधानाध्यापक हैं। सहित्यनामा के प्रस्तुतांक (मई 2021) की पहली कविता ‘शवों का मेला’ मर्मभेदी है। इसी कविता से-
“अधजली शव लोग फेंक रहे
दूर से खड़े लोग देख रहे
डर का आलम है
भयावह ये मेला है
कोरोना-कोरोना लोग बोल रहे
स्वर्गवाहन खूब घूम रहे
कभी नहीं कोई सोचा था
स्वप्न भी, नहीं कोई देखा था।”
कवितांश से महामारीजनित भयावहता स्पष्ट परिलक्षित हो रही है, दुःस्थिति स्पष्ट हो रही है। प्रस्तुतांक (मई 2021) की दूसरी कविता ‘राम नाम सत्य है’ में उद्धृत कवितांश तो देखिए-
“राम उड़ जाएगा
आनंद तरुवर पर चढ़ जाएगा
सिया तो दफन होगी
वसुधा में विलीन होगी !”
कवि विनोद जी मूलत: भोजपुरीभाषी हैं, किन्तु पटना रहवास के कारण उनकी भाषा में चिरपरिचित मगही टोन भी समाहित हो चुकी है। उनके द्वारा प्रणीत हिंदी कविताओं में ऐसी क्षेत्रीय भाषाएँ समादृत हैं। सहित्यनामा, मई 2021 में प्रकाशित इस पत्रिका की तीसरी कविता ‘विजयी भव:’ में प्रस्तुत कवितांश तो देखिए जरा-
“बचपन से जवानी तक
बुढ़ापे से अंतिम सफ़र तक
रंग-बिरंगे किरदार मिलेंगे
हल्की मुस्कान, अधिक गम मिलेंगे
प्यार भी अल्पकाल बरसेगा
झूठ का बादल गरजेगा
जाने की आएगी बारी
टूट जाएगी पथ पर यारी
जननी ही बोलेगी- विजयी भव: !”
अस्तु, श्री विनोद कुमार का साहित्यिक सफ़र ‘विजयी भव:’ रहे, आपको अनगिनत शुभमंगलकामनाएँ….