गजल
आदमी बनने से जुदा होना ।
और इंसान का खुदा होना ।
ऐब यह आदमी में पुश्तों से,
मतलबी बनकर बेवफा होना।
जड़ो को भूल गया है अहमक,
अब तो तय है तेरा फ़ना होना।
कई सालों से देखता आया ,
मंजिलों का यूँ रास्ता होना ।
साँप मेंढक की हिफाजत में है,
सोच लो अब भला है क्या होना?
‘गंजरहा’ टूटकर बहुत रोया ,
बहुत मुश्किल है बावफ़ा होना।
———–.डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी ‘ गंजरहा’