कहानी

बेबसी

       अभी हम लोगों ने होश हीं संभाला था। शाम होते ही गली में हम सब बच्चे खेलने निकल जाते थे । हम सब बच्चे गली में बैट बॉल खेलते , हमारी बॉल हमेशा शर्मा अंकल के घर में चली जाती, हम सब एक साथ चिल्लाने लगते, अंकल हमारी बॉल दे दीजिये। वह बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए हमारी बॉल वापस कर देते और बोलते थोड़ा आगे होकर खेला करो बच्चों, -हम उनकी बात को अनसुना कर देते,   हमारा रोज का काम था, हम हमेशा उनके घर के सामने ही बैट बॉल खेलते और उनके घर हमारी गेंद चली जाती। शर्मा आंटी थोड़ी गुस्से वाली थी । पर वह गाली नहीं देती थीं, उनके गुस्से में भी प्यार झलकता था.। बहुत बदमाश और शरारती बच्चे हैं यह,….. आज बॉल नहीं दूंगी , चाहे अंकल तुम्हारे कुछ भी कर ले। वह भी गुस्सा तब करती जब उनको बॉल लग जाती थीं, हम सब बॉल को भी उनके घर में बदमाशी में ही फेकते थे । उनके घर में एक बड़ा सा अमरुद का पेड़ था । अंकल आंटी ना होते तो हमलोग अमरुद तोड़ लेते। आंटी अक्सर खिड़की पर होती, हमें देखते  हीं कहती हम देख रहे हैं तुम लोगों की बदमाशी, और अंदर से टोकरी में अमरुद लाकर हमको दे देती .. हम सब बहुत खुश होते,  यह हम लोगों का रोज का काम था। धीरे-धीरे समय बीतता गया। हम बड़े होने लगे। हम लोग हाई स्कूल में पहुंच गए । हमारे हाईस्कूल के पेपर शुरू हो गयें हमारा  खेलना बंद हो गया। अब गली में सन्नाटा रहने लगा,शर्मा अंकल हम लोगों से रोज पूछते क्या बात है आज क़ल तुम लोग खेल नहीं रहे हो, बॉल खो गई है क्या ? “नहीं अंकल हम लोगो का पेपर चल रहा है’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा ।उन्होंने टोकरी से भरा अमरुद लाकर मेरे हाथों मे पकड़ा दिया। हम सबको शर्मा जी अंकल के अमरुद बहुत पसंद थे पेपर खत्म होते ही हम सब छुट्टियां मनाने चले गए। गली में सन्नाटा छा गया। जब हम लौटे तो शर्मा  अंकल आंटी ने हमसे पूछा तुम लोग कहां चले गए थे? जैसे उनको हम लोगों के बगैर अच्छा ही नहीं लग रहा हो। मैंने बताया हम लोग अपने नाना नानी के यहां गए थे।  अब वह दिन भी आ गया जिस दिन हम लोगों  रिजल्ट निकालना था।  शाम हो गई थी आज हम लोग का रिजल्ट आने वाला था,।शाम को हम सब बच्चे  पेपर वाले का इंतजार कर रहे थे।  तब पेपर मे रिजल्ट निकलते थे । अंकल ने हम लोगों को देखा हम सब बेचैनी से टहल रहे थे। उनको आज बड़ा आश्चर्य हुआ शर्मा  अंकल ने हम में से एक को बुलाकर पूछा -क्या बात है  आज तुम लोग   खेल नहीं रहे हो? हमने बताया आज हम लोगों का रिजल्ट आने वाला है हम लोग पेपर वाले का इंतजार कर रहे हैं। तभी पेपर वाले की आवाज सुनाई दी,….. वह जोर जोर से चिल्ला रहा था
 हाई स्कूल का रिजल्ट आ गया
 हाईस्कूल का रिजल्ट आ गया।
          हम सब तुरंत अंकल के पास से भाग गये, पेपर वाले के पास । हमने पैसे देकर उससे पेपर खरीदा। सब अपना अपना रोल नंबर पेपर में देख रहे थे । बीच बीच में कोई चिल्ला रहा था थोड़ा धीरे से यार पेपर फट जाएगा। अंकल आंटी धीरे-धीरे टहलते हुए हम लोग के पास आए । हमसे ज्यादा उनको जैसे रिजल्ट का इंतजार हो। तभी शर्मा अंकल बोले  अरे तुम लोग घबराओ नहीं आओ मेरे घर में बैठो और वहां आराम से देखो । हम सब ना चाहते हुए भी उनके घर में पहुंचे क्योंकि अंधेरा हो चुका था  अंकल का घर नीचे ही पड़ता था हम लोग सोसाइटी में ऊपर रहते थे।  पेपर लेकर घर भी नहीं जाना चाहते थे। मन में डर तो लगा ही रहता है। हम सब शर्मा अंकल के घर में आराम से पंखे के नीचे बैठकर अपना अपना रोल नंबर बोलते जा रहे थे और अंकल हम लोगों का रिजल्ट देखते जा रहे  थे। किसी की फर्स्ट डिवीजन तो किसी की सेकंड डिवीजन से  सब पास हो गए  थे.,सब बहुत खुश थे अपने पेपर के रिजल्ट से। अंकल ने हम लोगों का मुंह मीठा कराया मिठाई से। उस दिन शर्मा अंकल ने हम लोगों से खुलकर बात की कि आज तुम लोगों का रिजल्ट देख कर मुझे अपने बेटे और बेटी की याद आ गई उनके भी रिजल्ट इसी तरह आते थे और हम लोग इंतजार करते थे। बच्चों से ज्यादा तो हम लोगों को जल्दी होती थी रिजल्ट देखने कि,  मैं उस दिन ऑफिस से जल्दी घर आ जाता था .।
हम लोगों ने पूछा  _अंकल अब आपके बच्चे कहां हैं? क्योंकि हम लोगों ने पिछले कुछ सालों में अंकल आंटी को अकेले ही देखा था। अंकल थोड़ा रुक कर बोलने लगे, और उनकी आंखें भर आई, मेरा बेटा अमेरिका में रहता है और बेटी थाईलैंड., उनके पास अब हमारे लिए समय नहीं है, फोन पर अक्सर बात हो जाया करती है। हमने बच्चों को पढ़ाया लिखाया  कि वह बड़ा आदमी बनेंगे अच्छी जगह  नौकरी मिलेगी। अब हमारे बच्चे ही हमसे बहुत दूर है। आपनी आंखों के आंसू को रोकने का  बहुत प्रयास  कर रहे थे पर आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। जैसे किसी नदी का बांध टूट गया हो, और वह सब कुछ बहा ले जाना चाहता हो, आंसू बहते जा रहे थे और वह बोले जा रहे थे,वह बोले अब तो हम और तुम्हारी आंटी ही अकेले रहते हैं।  बच्चों की सलामती की दुआ करते हैं। और बच्चे कभी कभी हालचाल ले लेते हैं। हम लोगों ने शर्मा अंकल को  बोला आप क्यों नहीं अपने बेटे के पास अमेरिका ही चले जाते हैं । जब वह आकर ले जाएगा तब ना वह बोलता है  आप लोग वही रहिये इंडिया में। भगवान ही जाने बेटा अब तो हम  सोचते हैं कि पता नहीं  कब बच्चों से मिल पाएंगे भी या नहीं । हम लोगों ने अंकल को सांत्वना दी.। अंकल आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं वह लोग जरूर आएंगे कोई अपने मम्मी पापा को छोड़ता। तभी हम सबके घर से आवाज आने लगी। हम सब अंकल की बातों को बीच में छोड़ कर अपने अपने घर चले गए ।
 घर का माहौल बहुत खुश था मम्मी पापा ने हम लोगों के लिए मिठाई मंगाई हुई थीं । पता नहीं क्यों मेरा मन मिठाई खाने को नहीं कर रहा था। शर्मा अंकल की बातों को मन ही मन सोच रहा था। अंकल की बातें मुझे भूल नहीं रही थी। आज तक मैंने अंकल की आंखों में कभी आंसू नहीं देखा था । मैने जिज्ञासा बस पापा से पूछा पापा क्या मैं बड़ा होकर बाहर जाऊंगा। पापा बोले- हां बेटा नौकरी करने तो बाहर ही जाना पड़ेगा। पापा मैं बाहर नहीं जाऊंगा मैं आप लोग के पास ही रहूंगा। अरे बेटा सबको जाना पड़ता है। पापा मम्मी आप अकेले कैसे रहोगे। आप भी मेरे साथ चलना हां हां क्यों नहीं। पर आज तू कैसी बातें कर रहा है। पापा क्या आप जानते हैं शर्मा अंकल के बच्चे बाहर है और कितने सालों से वह आए ही नहीं हैं। कोई कैसे  अपने मां-बाप को भूल सकता है । पापा ने पूछा तुमको कैसे पता  चला बेटा ? पापा आज शाम को ज़ब हम सब का रिजल्ट आया तो हम लोग नीचे ही थे। अंधेरा हो जाने के कारण अंकल ने हम लोग को अपने घर में बुला लिया था। तभी शर्मा अंकल अपने बच्चों को याद करने लगे। जब उन्होंने अपने बेटे को ऊंची पढ़ाई के लिए बाहर भेजा था । उनकी आंखों से आंसू रुक हीं नहीं हो रहे थे। पापा बोले हां मुझे वह दिन याद है जब शर्मा जी ने अपने बेटे को उच्च पढ़ाई के लिए बाहर भेजा था। हम सब ने उनको बधाई दी थीं।उस दिन शर्मा जी कि खुशी का ठिकाना नहीं था.। शर्मा जी ने तो ऑफिस से अपना फंड निकालकर अपने बेटे को  बाहर भेजा था। तब का गया वह कभी वापस आया ही नहीं । सुना है उसने तो वही शादी भी कर ली है। पापा की बात सुनकर मैं बहुत दुखी हुआ।
            अब हमारा गली में खेलना कम हो गया है। स्कूल कोचिंग और घर यही हमारा रूटीन हो गया था । मैं सुबह शाम अंकल को नमस्ते जरूर करता। दिन भर में एक बार जरूर मिलता था। शर्मा अंकल भी अब मुझे बहुत प्यार करने लगे थे। मुझे भी अंकल का काम करना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन अंकल की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हुई  पापा और कॉलोनी के बाकी लोगो ने शर्मा अंकल को हॉस्पिटल ले गए। वह फिर कभी ना आये हॉस्पिटल से लौटकर। अंकल के मरने के बाद भी उनके बच्चे  नहीं आये । पापा के पास उनके बेटे का फ़ोन आया ।अंकल हम लोग नहीं आ पाएंगे प्लीज आप लोग उनका अंतिम संस्कार कर दीजियेगा। हम पैसे भेज देंगे। कॉलोनी के लोगों ने उनका अंतिम संस्कार किया। अब मैं बहुत उदास रहने लगा। मेरे मानस पटल पर उनकी बेबसी उभर आती थीं । शर्मा आंटी अब अकेले हो गईं। अब उनका कोई नहीं था बच्चों के होते हुए भी। उन्होंने भी अपने बच्चों से सारा नाता तोड़ लिया। मैं और मेरे दोस्त आंटी के पास अक्सर जा कर बैठते थे। मैंने उस दिन निश्चय किया मैं अपना देश छोड़कर और अपने मां बाप को छोड़कर कभी बाहर नहीं जाऊंगा।  आंटी की बेबसी है कि अब वह अकेले ही रहती हैं।  मैं अब एक सरकारी नौकरी करता हूँ। अपने हीं शहर में। क्या बच्चों को अधिक पढ़ाने लिखाने और बाहर भेजने का यही अंजाम है। तो कोई अपने बच्चों को पढ़ाएंगा ही नहीं । अगर मां-बाप का अपने बच्चों के लिए कोई फर्ज है तो बच्चों का भी अपने मां-बाप के लिए कोई फर्ज है।
— साधना सिंह “स्वपनिल”

साधना सिंह "स्वप्निल"

गोरखपुर में मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, मेरी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई है, मैंने एम ए सोशल वर्क से किया है, कंप्यूटर से मैंने डिप्लोमा लिया है