कहानी

लापरवाही

शाम का समय था मैंने अपने पति से कहा कि चलऐ ना, मेरी फ्रेंड शिवांगी के यहां चलते हैं, अक्सर कभी वो नहीं रहती कभी हम नहीं जा पाते। कुछ दिनों से मैं इनको अपनी फ्रेंड के यहां चलने को कह रही थीं। हम सबकी तबीयत बहुत ठीक ना रहने कि वजह से। नहीं जा पायें थे, “‘क्योंकि कॅरोना मे सब की तबीयत बहुत खराब होने से इतनी वीकनेस बहुत थी, ज़ब तक किसी काम को दस दफा ना सोचो तो वह काम हो ही नहीं रहा था,” यह बोले चलो तैयार हो जाओ आज चलते हैं भाई साहब की तबीयत खराब थी तब भी नहीं जा पाए थे.। ” आखिर शाम के 6:00 बजे हम उनके घर पहुंचे गए शिवांगी के पति अभी आए नहीं थे हॉस्पिटल से, उनका अपना हॉस्पिटल था, वो पेसे से डॉक्टर थे, शिवांगी चाय नाश्ते के इंतजाम में लग जाती है, और हम बैठकर बातें करते हैं, तभी उसके बच्चे आते हैं और उनसे थोड़ी प्यार भरी बातें होती हैं उसका छोटा बेटा बड़ा ही नटखट था छोटे पे, बच्चे मुझे मासी बुलाते थे, अब तो दोनों बहुत बड़े हो गए हैं देखने में सुंदर और सुशील। दोनों ने हम दोनों के पैर छुए उसके बाद अपने अपने कमरे में ऑनलाइन क्लास करने चले जाते हैं.। मैं और मेरी फ्रेंड आपस में दोनों खूब बाते करने लगते हैं मेरे पति अपने मोबाइल पर लगे थे , बीच-बीच में शिवांगी उनको कहती हैं जीजा जी हमसे भी बात कर लिया कीजिये यें मुस्करा कर बोलते बोलिये। वह बताने लगती है कि उसके पति करोना में जब बीमार हुए तो उसने कैसे करोना मैं अकेले ही बच्चों के साथ बहुत ही साहस से काम लिया था।यें भी बहुत तारीफ करते हैं उसकी, आप वाकई में बहुत हिम्मती हैं। शिवांगी आगे बोलती हैं उसके पति डॉ.आर्यन 10, 15 दिन हॉस्पिटल में रहे, ऑक्सीजन पर,वह देर चुप हो जाती हैं,
तभी मैंने बोला सच में वह समय तुम्हारा बहुत ही मुश्किलों में बीता जिसका अंदाजा वही लगा सकता है जिस पर बीता हो, जब उसके पति हॉस्पिटल में थे, हम सब फ्रेंड उससे फोन पर ही बातें कर लेते, पूछ लेते हमारे लायक कोई काम हो तो बताना । परेशान हालत में हां कह कर वह फोन रख देती। लेकिन वह कभी हम लोगों को यह नहीं बताती कि उनकी तबीयत ज्यादा खराब है जब भी बात होती तो वह यही कहती पहले से इंप्रूवमेंट है.।वह हमेशा पॉजिटिव रहती थीं, उसके साहस को मैं आज भी सैल्यूट करती हुँ अगर मैं उसकी जगह होती तो बहुत रोती और मैं इस तरह से अपने को नहीं संभाल पाती। उस दिन मुझे पता चला, शिवांगी में कितनी धैर्यता और सहनशीलता है घर मे दो बच्चों को देखना और मां को देखना हॉस्पिटल के लिए भी खाना भेजना नाश्ता भेजना टाइम टाइम से सारे काम बहुत बड़ी सहनशीलता से करती थी। आज उसका खुशी भरा चेहरा देखकर मुझे बहुत संतोष हो रहा था। बार-बार एक ही बात को कह रही थीं कि तुम बहुत बहादुर हो,। अभी हम लोग बात कर रहे थे। कि तभी उसके हस्बैंड डॉ.आर्यन भी अपने हॉस्पिटल से आ गए। “नमस्ते भैया ‘ उन्होंने भी अभिवादन स्वीकार करके नमस्कार बोला और फ़िर हाथ धुल कर ,आकर हम लोगों के पास बैठ गए हम सब अपने-अपने करोना काल के एक्सपीरियंस को शेयर करने लगे .। मैंने उत्सुकता बस भैया से पूछा भैया कुछ अस्पताल का बताइए वहां अंदर क्या हो रहा
था । तभी वो थोड़ा मुस्कुराए फिर बोले एक दिन का वाकया मैं आपको बताता हुँ । मैं तो बीमार था और मेरी हालत ऐसी ना थी कि मैं उठ कर खड़ा हूं और अपना कोई काम कर सकूं तब भी मैं उठता था। किसी तरह अपने अंदर से हिम्मत जुटा के बैठता था दवाइयां लेता था.। वैसे तो अस्पताल में नर्स तो रहती हैं दवाइयां देती हैं.। चुकी एक डॉक्टर होने के नाते मुझे टाइम से दवाइयां लेनी आदत थी और नर्सों को एक वार्ड से दूसरे वार्ड मे आने से कभी-कभी लेट हो जाता था। मैं अपने बेड पर था,उस समय में मेडिसिन के खाने से मेरी शुगर और बी पी भी बढ़ चुका था.। रोज मुझे इन्सुलिन लगती थीं, सुबह का टाइम था तभी नर्स ने आकर मुझसे कहा सर सर उठिये इंसुलिन लगानी है , मैंने इंसुलिन का इंजेक्शन देखा तो मैंने उससे कहा आपने मेरी शुगर तो चेक कि नहीं। उसने ‘बोला, ‘ सर आपको शुगर है ना टाइम हो गया है इंसुलिन देने का , मैंने उससे बोला पहले तुम मेरी शुगर टेस्ट तो कर लो, फिर इंसुलिन देना, मैंने थोड़ा मुस्कुरा कर ही उससे बोला, वह बोली ठीक है ज़ब उसने मेरा शुगर टेस्ट किया, तो वह भी चौक गई, अरे सर! ” मैंने बोला क्या हुआ” यह क्या आपका शुगर लेवल तो 60 है, वह थोड़ा घबरा गई सर क्या आपके पास मीठा बिस्किट है ना , “मैंने सर हिलाकर बोला हां “सर जल्दी से खाइए, मैंने उससे बोला अभी तो तुमने इंजेक्शन लगा दिया होता तो मेरा तो” राम राम सत्य ” आज ही हो जाता है, क्योंकि इंसुलिन लगते ही मेरा शुगर लेवल और नीचे आ जाता । उस दिन वह नर्स अपनी लापरवाही पर बहुत ही शर्मिंदा हुई .। और माफी मांगने लगी। मैंने भी उसको माफ कर दिया अपना बड़प्पन दिखाते हुए। लेकिन वह लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती थी । आज का यह वाकया उस दिन का हादसा होता है अगर ध्यान ना देता। भैया की बातें सुनते ही हम सब आवक रह गए, हम सबके मुंह खुले के खुले और आंखें चौड़ी हो चुकी थी एक हादसा होते-होते टल गया था …

— साधना सिंह “स्वप्निल”

साधना सिंह "स्वप्निल"

गोरखपुर में मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, मेरी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई है, मैंने एम ए सोशल वर्क से किया है, कंप्यूटर से मैंने डिप्लोमा लिया है