कविता

महल और झोपड़ी

बड़ा फर्क है दोनों में
मगर दोनों आते हैं
निवास के ही काम।
उसमें भी अंतर है
महल राजे महराजों का
झोपड़ी गरीबों लाचारों का
होता है आवास।
मगर अंतर इनके भीतर
रहने वालों में भी है,
अमूमन महल वालों का दिल
झोपड़ी वालों से
बहुत छोटा ही नहीं
संकीर्ण भी होता है,
दोनों के निवास स्थान में
जितना अंतर होता है,
उनके मन में एकदम विपरीत
सुविचार होता है।
फर्क महल या झोपड़ी में
निवास करने से नहीं,
उनमें निवास करने वालों की
भावनाओं से साफ होता है,
क्योंकि अमूमन
महल वालों का दिल
झोपड़ी की तरह छोटा और
झोपड़ी वालों का
महल सा विशाल होता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921