गीत/नवगीत

गुरु जो जीने के गुर सिखाए

गुरु जो जीने के गुर सिखाए
आत्मविश्वास की लौ जगाए
भूलें हम जब लक्ष्य की राह
वो मार्ग सब प्रशस्त कर जाए
गुरु जो जीने के गुर सिखाए
जीवन के सिंधु में गोते गहन
कैसे कर पाते कष्ट सहन
है कठिन निवारण विषम वहन
किंतु ज्ञानदीप कर प्रकाशमय
दिग दिगांत देदीप्य कर जाए
गुरु जो जीने के गुर सिखाए
न देता केवल पुस्तकों का ज्ञान
करता मानो नव जीवन प्रदान
हो जीवन जो नैतिकता प्रधान
 विश्वास की लौ अखण्ड जलाए
गुरु जो जीने के गुर सिखाए
वो करता सुदृढ चरित्र परिपूर्ण
स्वयं में स्वयं के अंतर्निहित पूर्ण
व्यक्तित्व विकास करे सम्पूर्ण
उज्ज्वल भविष्य गढ़ता जाए
गुरु जो जीने के गुर सिखाए
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी