गीत/नवगीत

हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है

हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है
जीवन की सब कमियाँ  टल जाती है।

चाह ! मेहनतकश हाथों की निशानी है,
कठोर हाथों ने श्रम उंगली थामी है।
पसीने में प्यार करना सज़ा मानी है
हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है।।
जीवन की सब कमियाँ  टल जाती है।।

जब पेट की भूख को होता झेलना
काम को कितनी मिन्नते से मांगना
अकेले सी पत्नी आहें भरते सी खोई
उस बिन घर बैठे पागल सा मानना
साथ हाथ बटाया संग मुस्काती है
हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है।।
जीवन की सब कमियाँ टल जाती है  ।।

ये वास्ता निगाहों में नाम है तुम्हारा
आँखों में बैठाया था तुम्हारा नज़ारा
सुवह शाम होती साथी बस कमाने में
जीती हूँ माना तेरा साथ निभाने में
साथ ही आरजू हो हाथ में है मान
पसीने में प्यार करना सज़ा मानी है
हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है

मजदूर की पीड़ा को कोई कैसे समझा !
एक छत चाहत हजारों छत  लानी है !!
मेहनतकशी जीवन ख़ुशी तब आती है
दूसरों के सपनों में अपना सा पाती है
पलकें ख़ुशी पा निहारती दुलारती है
हंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है
जीवन की सब कमियाँ  टल जाती है।

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]