चेख़व और राजेंद्र दा
कहना अप्रासंगिक नहीं होगा, ‘हंस’ भी उस आलेख से और भी पहचाने गए थे! उनकी ज़िद ने मेरे आलेख को छापा था, वरन उनके मंडल तो तैयार नहीं थे! श्रद्धेय राजेन्द्र यादव से कई बार पत्राचार हुआ है, उनके कई पत्र मुझे और मेरी बहन को प्राप्त है । उनके निधन के बाद भी ‘हंस’ उनकी एकमात्र संतान ‘रचना’ के प्रकाशनाधीन अनवरत छप रही हैं, किन्तु श्री संजय सहाय के सम्पादकीयता में वो मज़ा कहाँ, जो यादव जी की लेखन-कारीगरी में थी !
हिंदी के बौद्धिक हॉरर व साहित्यिक डॉन ‘राजेन्द्र यादव’ यानी 28 अगस्त ! उस शख़्सियत की जन्म-जयंती है, जिसे ‘राजेन्द्र यादव’ कहा जाता है, जिनके निधन हुए 7 साल हो गए, किन्तु बौद्धिक हॉरर वह अबतक बने हुए हैं । उनकी काफी रचनाएँ हैं, यहाँ तक की उन्होंने अपनी संतान का नाम ‘रचना’ ही रखा ! राजेन्द्र यादव से कईबार मुलाकातें हुई हैं, एक बार तो 3 घंटे तक बातचीत चली, वो तो वीना ‘दी ने उन्हें समय से अवगत कराई । वे जिंदादिल और मजेदार व्यक्ति थे ! उनकी पहचान नई कहानी के कथाकार-त्रयी के रूप में हैं, किन्तु मुख्य पहचान ‘हंस’ के पुनर्प्रकाशन से बना है । ‘हंस’ में उनकी सम्पादकीय ऐसी तथ्यान्वेषण लिए होती थी/हैं, जो शाब्दिक-बारूद से कतई कम नहीं था । ‘हंस’ के दो भिन्न अंकों में मेरे दो वृहद आलेख प्रकाशित हुए हैं, जो राजेन्द्र सर के संपादकत्व में प्रकाशित हुई थी ।
आइये, हम उनके रचना-संसार से अवगत होते हैं, यथा- कहानी-संग्रह:- देवताओं की मूर्तियाँ:1951, खेल-खिलौनेः 1953, जहाँ लक्ष्मी कैद हैः 1957, अभिमन्यु की आत्महत्याः 1959, छोटे-छोटे ताजमहलः 1961,
किनारे से किनारे तकः 1962, टूटनाः 1966, चौखटे तोड़ते त्रिकोणः 1987,
ये जो आतिश गालिब (प्रेम कहानियाँ): 2008, यहाँ तकः पड़ाव-1 और पड़ाव-2 (1989), वहाँ तक पहुँचने की दौड़, हासिल ।
उपन्यास:- सारा आकाशः 1959 (‘प्रेत बोलते हैं’ के नाम से 1951 में),उखड़े हुए लोगः 1956, कुलटाः 1958, शह और मातः 1959, अनदेखे अनजान पुलः 1963,
एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ) : 1963, मन्त्रविद्धा: 1967, एक था शैलेन्द्र: 2007.
कविता-संग्रह:- आवाज तेरी हैः 1960;
नाटक:- चैखव के तीन नाटक (सीगल, तीन बहनें, चेरी का बगीचा)।
अनुवाद:- उपन्यास : टक्कर (चैखव), हमारे युग का एक नायक (लर्मन्तोव) प्रथम-प्रेम (तुर्गनेव), वसन्त-प्लावन (तुर्गनेव), एक मछुआ : एक मोती (स्टाइनबैक), अजनबी (कामू)- ये सारे उपन्यास ‘कथा शिखर’ के नाम से दो खण्डों में- 1994, नरक ले जाने वाली लिफ्ट: 2002, स्वस्थ आदमी के बीमार विचार: 2012.
समीक्षा-निबन्ध:- कहानीः स्वरूप और संवेदनाः 1968, प्रेमचन्द की विरासतः 1978, अठारह उपन्यासः 1981 औरों के बहानेः 1981, काँटे की बात (बारह खण्ड)1994, कहानी अनुभव और अभिव्यक्तिः 1996, उपन्यासः स्वरूप और संवेदनाः 1998, आदमी की निगाह में औरतः 2001, वे देवता नहीं हैं: 2001, मुड़-मुड़के देखता हूँ: 2002, अब वे वहाँ नहीं रहते: 2007, मेरे साक्षात्कारः 1994, काश, मैं राष्ट्रद्रोही होता : 2008, जवाब दो विक्रमादित्य (साक्षात्कार): 2007.
सम्पादन:- एक दुनिया समानान्तरः 1967, प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ का पुनर्प्रकाशन अगस्त,1986 से, कथा-दशकः हिन्दी कहानियाँ (1981 -90),
आत्मतर्पणः 1994, अभी दिल्ली दूर हैः 1995, काली सुर्खियाँ (अश्वेत कहानी-संग्रह): 1995, कथा यात्रा: 1967, अतीत होती सदी और त्रासदी का भविष्य: 2000 औरत : उत्तरकथा 2001, देहरी भई बिदेस, कथा जगत की बाग़ी मुस्लिम औरतें, हंस के शुरुआती चार साल 2008 (कहानियाँ), वह सुबह कभी तो आयेगी (साम्प्रदायिकता पर लेख): 2008.