देश के स्वतंत्रता संग्राम में मेरे गांव की भूमिका
शहीदों की नगरी शाहजहांपुर कभी किसी क्षेत्र में पीछे नहीं रहा।समय-समय पर अनेक प्रतिभाओं में से बहुमुखी प्रतिभा के धनी]साहसी]वीर व कर्मठ व्यक्तित्व पं- हरिप्रसाद मिश्र सत्यप्रेमी की जन्म भूमि पुवायां की धरती रही है।1956-57 के आसपास स्वर्गवासी हुए सत्यप्रेमी जी का मूल निवास स्थान पुवायां से शाहजहांपुर मार्ग पर स्थित बड़ागाँव था।बचपन से लेकर युवावस्था तक अधिक समय यहीं बीता अनेक समाज-देशहित की गतिविधियों में संलग्न रहे।अपने निजीपरिवारिक हितों की अपेक्षा देश-समाजहित को महत्व दिया कई बार परिवारिक सदस्यों को अभावों के सहारे अकेला छोड़ा।उनके समय के गांव के तीन लोगों ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का निर्णय लिया।पर अेकेले सत्यप्रेमी जी को बिटिश हुकूमत का दमनचक्र झुका न सका एक जो निर्णय लिया।जीवन भर अडिग रहे।संघर्ष के समय जेल जाना अधिकाधिक समय तन्हाई में बिताना सामान्य बात हो गई।देश की आजादी के लिए बाधक बन रहे परिवारिक दायित्वों को कई बार अनदेखा किया।
एक मध्यम वर्गीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्में सत्यप्रेमी जी की आरम्भिक शिक्षा मिडिल स्कूल पुवायां में हुई जहां से इन्होंने आठवीं की थी।इनको पढ़ना-लिखना अच्छी तरह से आता था।समयानुसार इनका विवाह शाहजहांपुर सदर के भीमसेन की बहिन के साथ हुआ।जिनसे इनके तीन संतानें एक लड़का और दो लड़कियां हुईं।पं- रामलाल मिश्र के पुत्र के रुप में जन्में यह कुल तीन भाई थे।जिनमें यह सबसे बड़े थे।इनसे छोटे शिवप्रसाद मिश्र व सबसे छोटे गुरुप्रसाद मिश्र थे इनके द्वारा 1921 के आस-पास स्थापित हिन्दी मंदिर आज भी हिन्दी सदन के परिवर्तित नाम के साथ साहित्य हित में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है।जिसके नाम पर बने ब्लाग पर प्रतिदिन सैंकड़ों पाठक जाकर अपनी पसन्द की सामग्री पढ़ते हैं।जहां से अब तक लगभग दो दर्जन पुस्तकें छप चुकी हैं।आधा दर्जन से अधिक गूगल अमेजन फ्लिपकार्ट रेडिफ आदि आनलाइन प्लेटफार्मों पर बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
इनके जीवन का अधिकांश समय जनपद शाहजहांपुर की धरती पर बीता कर्मभूमि यही रही।बड़ागांव का निवास इनकी अनेक आजादी विषयक गतिविधियों का केन्द्र रहा।इनके समय पर अनेक राजनेताओं नें गांव में कदम रखे।प0 जवाहर लाल नेहरू व गोविंद बल्लभ पंत के आने का पता पारिवारिक सूत्रों से चलता है।कुछ परिवारिक व राजनीतिक कारणोंवश इनको उन्नीस चालीस-पचास के मध्य गांव छोड़ना पड़ा और उसके बाद के अल्प समय की सारी गतिविधियां बाराबंकी से संचालित हुईं।इनका अपनी छोटी लड़की के विवाह के दिन आकस्मिक निधन हो गया।
proceedings official report के भाग-154 समस्या 01-03 Authoy uttar Pradesh (india) legisiatilature legislative assembly published-1981 में बाराबंकी जिले में 207नवाबगंज दक्षिण प्रथम विधानसभा 1952-57 तक सदस्य रहे उमाशंकर मिश्र के माध्यम से श्री चन्द्रभानुशरण सिंह तथा श्री हरिप्रसाद सत्यप्रेमी के निधन पर शोकोद्गार शीर्षक से 23 से 26 पृष्ठ मिलता है।जिसमें इन्होनें तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए पण्डित जी को श्रृद्धांजलि देते हुए बड़ा ही वीर और साहसी बतलाया है।इस आधार पर सत्यप्रेमी जी के निधन का साल 1957 से पूर्व माना जा सकता है।सत्यप्रेमी जी एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ समाजसुधारक साहित्यकार व पत्रकार भी थे।संघर्षी जीवन के मध्य मिले समय का उपयोग सृजन सामाजिक बुराईयों को दूर करने में करते थे।जीवन भर कठिनाईयां कारागार भोगते हुए इन्होंने पाठकों कों बहुत कुछ देने का प्रयास किया है।इन्होंने अपने जीवन काल में सात पुस्तकें-1-राष्ट्रभेरी -1929, 2-हमारी सामजिक कुरीतियां- 1936, 3-सुलभ चिकित्सा व घरेलू वैद्य 4-भारत में बिट्शि शासन और उससे मुक्ति की कहानी-1954, 5-मुक्ति के मार्ग, 6-शिक्षाप्रद दोहे व ,7-स्वर्ण सीकर लिखी हैं।जिनमें से क्रम संख्या दो व चार मेरे पास अत्यन्त जर्जर अवस्था में उपलब्ध थीं,जिनको मैंने पढ़ा था।कुछ साल पूर्व एक शोधार्थी के मांगने पर कोरियर से भेजी।पर दुर्भाग्य से वह रास्ते में खो गयीं न उसे मिली और न ही मेरे पास रह पायीं।इनको पढ़ते समय कुछ अंश नोट कर लिए थे जिनका उल्लेख इस आलेख में यथा स्थान किया है।
बिटिश शासन और उससे मुक्ति की कहानी, पुस्तक की भूमिका में यह पुस्तक प्रकाशन पर अपना उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखते हैं-‘‘सन् 1934 ई0 का काल था और मैं पुनः एक लम्बी अवधि का कारावास भोगकर अपने भवन पर रक्ताल्पता रोग की चिकित्सा कर रहा था और कभी-कभी सन् 1921 ई0 से उस समय तक के अध्ययन के यत्र तत्र नोट पढ़ने लगता था।उन नोटों को पढ़ते-पढ़ते यह लोभ पैदा हुआ कि यदि इन सबको श्रृखंलाबद्ध कर के पुस्तक रुप में तैयार करके प्रकाशित कर दिया जाए तो हिन्दी भाषा की भी सेवा हो और राजनैतिक कार्य कर्ताओं के ज्ञान में वृद्धि कराकर वर्तमान स्थिति (परतंत्रता) से जनता में असन्तोष पैदा किया जा सकता हैं।“अर्थात उनका उद्देश्य अपनी कृति के माध्यम से हिन्दी की सेवा के साथ-साथ अंग्रेज साम्राज्य को उखाड फेंकने का वातावरण उत्पन्न करना था।देश के नौजवानों को देश की तात्कालिक दशा और दिशा से अवगत कराना था।साथ ही यह भी पता चलता है कि वह इससे पहले भी जेल गये थे।
यह अंग्रेजां को भारत पर शासन करने के योग्य भी नहीं मानते थ।उनको यह अनुभव था कि किस प्रकार हमारा देश अंग्रेजों की लापरवाही के दुष्परिणाम भुगत रहा है।इस सम्बन्ध में भी उन्होनें अपनी इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या -76 पर लिखा हैं–
’’ऊँचे- ऊँचे पदाधिकारी सिर्फ पॉंच वर्ष के लिए विलायत से यहां भेजे जाते थे।वह जो कुछ कहते ठीक माना जाता था।जैसे ही वह यहॉ की कुछ जानकारी प्राप्त करते थे।वैसे ही विलायत वापस हो जाते थे।भला वह कैसे भारत में शासन करने के योग्य हो सकते थे अंग्रेज सबसे अधिक भारत में शासन करने के अयोग्य तो इसलिए थे कि वह हर तरह से हमारी उन्नति में लापरवाही करते थें।“
आजादी आंदोलन के समय कारागार भोगना इनके जीवन की सामान्य घटना थी।1921 से 1934 तक के लम्बे कारावास का उल्लेख इनकी पुस्तक बिटिश शासन और उससे मुक्ति की कहानी में मिलता है।इससे पूर्व या बाद भी यह कारावास गए थे।इसका स्पष्ट पता नहीं चलता।इनकी परिसम्पत्तियां का आये दिन कुर्क किया जाना अंग्रेजी हुकूमत के समय एक सामान्य घटना थी।प्रत्येक महीने चार-छः बार तक भी सम्पत्ति कुर्क हो जाती थी एक-दो बार इन्होंनें मकान का कुछ जरुरी सामान पहले ही पड़ोसी के यहां रख दिया।1934 के बाद पुलिस इनको पकड़ने में असफल रही।1942 में महात्मा गांधी के द्वारा भारत छोड़ों आंदोलन छेड़ने पर यह सक्रिय हो गये।फलतः एक बार पुनः बड़ागांव के मकान की इनकी सम्पत्ति कुर्क कर ली गई।जिसमें ‘‘बिट्शि शासन और उससे मुक्ति की कहानी की पाण्डुलिपि भी पुलिस के हाथ लग गई।पर कागजात के ढेर व बोरे में रखी होने से पुलिस की दृष्टि उस पर न पड़ी और फिर वह उन्हीं कागजातों व सामान के साथ सन् 1944 में अन्य सामान के साथ वापस मिल गई।आंदोलन के दौरान इनके सहयोगियों में रफी अहमद किदवई, पं. गोविन्द बल्लभ पंत, चन्द्रभानु गुप्त व जयराम शर्मा का नाम लिया जाता है।पं. नेहरु व गांधी का सानिध्य इन्हें मिला।एक बार पं. नेहरु अपनी बेटी इन्दिरा प्रिदर्शिनी के साथ इनके यहां बड़ागांव निवास पर आये थे।यह घटना लगभग 1921 के आस- पास की रही होगी।
सत्यप्रेमी जी राजनीति में अवसर मिलने पर सक्रियता दिखाने से नहीं चूके।स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने भागीदारी कांग्रेस संगठन के सदस्य के रूप में निभायी।अनेक के प्रेरणास्रोत बने।
जन्मभूमि को नमन❤🙏