ग़ज़ल
बड़ी ही कृपा की जो चले आप आए।
भला आपका हो जो चले आप आए।।
बिना गर्ज़ के एक हिलता न पत्ता,
बल्लियों दिल उछलता चले आप आए।
कूपों में अपने घुमड़ते हैं दादुर,
कुआँ छोड़ अपना चले आप आए।
खाए हैं बतासे बातों के हमने,
बात बिगड़ी को बनाने चले आप आए।
किसी और की है न चिंता किसी को,
छोड़ अपनी भी खुमारी चले आप आए।
कहता है समाजी मगर दूर जग से,
समझ आप अपना चले आप आए।
‘शुभम’ रंग दुनिया ये बदले हजारों ,
रँग अपना ही जमाने चले आप आए।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’