जिंदगी
अगर ऐसा होता
तो कैसा होता
वैसा होता
तो कैसा होता
कहकर आगे बढ़ती रही जिंदगी
कभी इस मोड़
कभी उस मोड़
भटकती चलती रही
आखिर एक दिन
दो राहें पे आकर
छटपटाती दम तोड़
रुखसत हो चली
न जाने किस गली में जिंदगी
*ब्रजेश*
अगर ऐसा होता
तो कैसा होता
वैसा होता
तो कैसा होता
कहकर आगे बढ़ती रही जिंदगी
कभी इस मोड़
कभी उस मोड़
भटकती चलती रही
आखिर एक दिन
दो राहें पे आकर
छटपटाती दम तोड़
रुखसत हो चली
न जाने किस गली में जिंदगी
*ब्रजेश*