खुदीराम बोस और एक शायर
शहीद खुदीराम बोस के ‘शहादत दिवस’ पर सादर श्रद्धांजलि ! मैं उस माटी को नमन किया है, जिस जगह ‘खुदीराम’ ने फाँसी पाई ! 11 अगस्त यानी देश के युवा शहीद स्वतंत्रता सेनानी ‘खुदीराम बोस’ की पुण्य तिथि है । अंग्रेज अफसर किंग्स फोर्ड पर बम चलाने के आरोपित खुदीराम को 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर (बिहार) में फाँसी दी गई थी, उस कारा का नाम अब ‘खुदीराम बोस केन्द्रीय कारा, मुजफ्फरपुर’ है।
आजादी से पूर्व भारत के सबसे कम उम्र के फाँसी पानेवाले शहीद सेनानी थे- मास्टर खुदीराम । मैं इस जगह को गया हूँ और स्व. खुदीराम की प्रतिमा का चरणस्पर्श कर उस जगह की पुनीता माटी को मस्तक से लगाई है। पुण्यतिथि पर शहीद सेनानी को सादरांजलि ! श्रद्धांजलि !
वहीं प्रख्यात शायर “राहत इंदौरी” को कोरोना ने लील लिया, तब वे 71 वर्ष के थे। प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें नमन ! विकिपीडिया के अनुसार, वर्ष 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया। तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। राहत इंदौरी जी ने शुरुवाती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। उनके छात्रों के मुताबिक वह कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे। फिर बीच में वो मुशायरों में व्यस्त हो गए और पूरे भारत से और विदेशों से निमंत्रण प्राप्त करना शुरू कर दिया।
उनकी अनमोल क्षमता, कड़ी लगन और शब्दों की कला की एक विशिष्ट शैली थी, जिसने बहुत जल्दी व बहुत अच्छी तरह से जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। राहत साहेब ने बहुत जल्दी ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना लिया और तीन से चार साल के भीतर ही उनकी कविता की खुशबू ने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया था। वह न सिर्फ पढ़ाई में प्रवीण थे बल्कि वो खेलकूद में भी प्रवीण थे,वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे। वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी।