कविता

सावन देखो फिर से आया

कोयल के मीठे बोल हुए
पपिहा मन ही मन मुस्काया
वसुधा की प्यास बुझाने को
सावन देखो फिर से आया

घनघोर घटा के अम्बर ने
सब बंद किवाड़े खोल दिये
इठलाकर उस पुरवाई ने
कुछ रंग प्यार के घोल दिये

बरसे वारिद फिर ऊमड़-घुमड़
जन जीवन जिसमें हर्साया
वसुधा की प्यास बुझाने को
सावन देखो फिर से आया

मुरझाई कलियों के मुख पर
जब मेघों ने छीटे मारे
कलियाँ पल भर में चेत गयी
बिजली ने यूँ झीटे मारे

उपवन में गूंज उठे नव स्वर
जब प्रेम सुधा रस बरसाया
वसुधा की प्यास बुझाने को
सावन देखो फिर से आया

कागज की नावों पर बचपन
गलियों -गलियों में घूम उठा
कजरी – ठुमरी की तालों में
झूलों पर यौवन झूम उठा

तब मेघ मल्लारो में जग ने
सावन मन भावन को गाया
वसुधा की प्यास बुझाने को
सावन देखो फिर से आया

संदेश कई भेजे हमने
सावन के शीतल झोकों से
प्रिय लौट रहे है बरखा में
देखा जब झाँक झरोखों से

बदली में निकली धूप नवल
जो साथ लिये आई छाया
वसुधा की प्यास बुझाने को
सावन देखो फिर से आया

— कैलाश कुमार यादव

कैलाश कुमार यादव

देवरामपुर घनश्यामपुर बदलापुर जौनपुर उत्तर प्रदेश मो.7309673433