गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़मों से टूट के इक दिन बिखर ही जाते हम,
तुम्हारा  साथ न मिलता तो मर ही जाते हम ।
वो अपने आप को आईना गर बना लेता,
ज़रा सी देर को शायद संवर ही जाते हम।
जुनून ए इश्क़ ने सहरा में ला के छोड़ा है,
जो अपने शह्र में होते तो घर ही जाते हम ।
हमें तो अपनी वफ़ाओं का पास रखना था,
वगरना बात से अपनी मुकर ही जाते हम ।
हमारे पाओं में जंज़ीर गर नहीं होती,
जहाँ को आप चले थे उधर ही जाते हम ।
किसी के इश्क़ ने हमको बचा लिया वरना,
ख़ुद अपनी क़ब्र में तन्हा उतर ही जाते हम।
क़ज़ा ये वक़्त जो देती “शिखा” की हस्ती को,
तुम्हारे नाम से मंसूब कर ही जाते हम ।
— दीपशिखा सागर

दीपशिखा सागर

दीपशिखा सागर प्रज्ञापुरम संचार कॉलोनी छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)