इतिहास

अद्भुत प्रेम के मजबूत किरदार दशरथ मांझी को चाहिए भारत रत्न

बिहार के मगध प्रमंडल के गया जिले के इमामगंज प्रखंड स्थित ‘गेहलौर’ गांव में समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े एक परिवार में दशरथ मांझी जी का जन्म हुआ था।वे बच्चन से ही जूनून से भरपूर मजबूत इच्छाशक्ति वाले इंसान थे।इस बात को उन्होंने ने साबित कर दिखाया जब वे अपने दम पर हथौड़ी छेनी के सहारे 360 फीट लंबे ,30 फीट चौड़े एवं 25 फुट ऊंचे पहाड़ को दिन रात एक कर 22 वर्षों (1960-1982)तक काटते-काटते सड़क बना कर ही दम लिया। उनके जूनून ने जाने अनजाने ही वजीरगंज और अतरी के बीच की जो दूरी 55 किलोमीटर थी घटकर 15 किलोमीटर रह गई।
दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था।इनके पिता थे श्रीमान भागीरथ मांझी और माता श्रीमती फागुनी देवी।दशरथ मांझी का सम्पूर्ण जीवन बहुत ही अभाव में व्यतीत हुआ।लेकिन उनके कर्मों ने उन्हें आज महान शख्सियत बना दिया.उनके कार्यों से प्रभावित होकर भारत सरकार द्वारा पदम श्री सम्मान दिया गया। बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ गोप गुट प्रवक्ता और सामाजिक और राजनीतिक चिंतक गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम का मानना है मांझी जी ने अपने अद्भुत प्रेम को जिस तरह से अभिव्यक्त कर दुनिया के सामने प्रेम की एक नई मिसाल कायम की है उस प्रेम को सम्मान देने के लिए उन्हें भारत रत्न हर हाल में दिया जाना चाहिए। इससे भारत रत्न की प्रासंगिकता भी बढ़ती हुई नजर आएगी। बिहार सरकार को इस दिशा में को पहले करते हुए केन्द्र सरकार से स्वर्गीय मांझी जी को मरनोपरांत भारत रत्न देने की मांग ज़ोरदार तरीके से करनी चाहिए। वर्तमान राजनीतिक हालात भी अनूकूल है क्योंकि केन्द्र और बिहार दोनों जगह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है और यही नहीं दोनों सरकारों के मुखिया अपने आप को गरीब पिछड़ों के हितैषी घोषित करते रहते हैं।इसे साबित करने का इससे उचित परिस्थिति नहीं हो सकता।
दशरथ मांझी जिन्हें आज दुनिया “पर्वत पुरुष” के रूप में जानती है उस पर्वत पुरुष सम्मान देने के लिए पर्वत जैसे अडिग इच्छा शक्ति दिखाने की जरूरत है।
दशरथ मांझी आज दुनिया के लिए एक ऐसे प्रतीक पुरुष बन गए हैं जो अपने पत्नी के रास्ते में आने वाले पहाड़ रूपी खड़े बाघा नहीं बल्कि सच में एक पहाड़ को खत्म कर लाखों मां बहनों के लिए सुगम रास्ता का निर्माण कर डाला था।दशरथ मांझी का नाम आज मुगल बादशाह शाहजहां के नाम से ऊपर लिया जाता है।जिन्होंने अपनी प्रियतमा मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया था।वहीं दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में पर्वत को तराश कर सड़क का निर्माण कर डाला।दशरथ मांझी को गेहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ था,जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे दशरथ मांझी के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी “फगुनी” पहाड़ के दर्रे में गिर गयी थी और अंततः उनका निधन हो गया।
अगर इंसान अपने मन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सच्चे मन से ढृढ प्रतिज्ञा कर ले और उसे पाने के लिए उसके दिल में जुनून हो तो इस संसार कि कोई भी शक्ति उसे अपनी मंजिल पाने से रोक नहीं सकता।यह बात दशरथ मांझी के द्वारा किए गए कार्य को देखकर हम समझ सकते हैं।दशरथ मांझी ने सिर्फ पर्वत को नही झुकाया।इससे अलावे भी इन्होंने लैंड मार्क कार्य किए।दशरथ मांझी रेल पटरी पकड़कर तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से मिलने के लिए क्रमशः पटना और दिल्ली तक पहुंच गए थे। उन्होंने ने उस लंबी दूरी को अपने पैरों से नाप दिया था।पर यह कार्य पर्वत काटने के कार्य की बराबरी नहीं कर सका और यह उनकी छिपी हुई कहानी बन गई।
दुनिया के सामने दशरथ मांझी ने जो मिसाल पेश किया है वह आने वाले लाखों बरसों तक श्रद्धा के साथ याद किया जाएगा और प्रेम की मिसाल के रूप में जाना जाएगा।
ऐसा नहीं है दशरथ मांझी के इस कार्य में कोई दुश्वारियां नहीं थी।इस कार्य को करने के लिए दशरथ मांझी को कई प्रकार के पापड़ बेलने पड़े।उनके पास गेहलोर पहाड़ को काटने के लिए अच्छे किस्म के औजार नहीं थे जिससे उन्हें बहुत परेशानी हो रही थी और अधिक समय भी लग रहा था आगे चलकर उन्हें “शिबू मिस्त्री” से कुछ औजार प्राप्त हुआ था।पहाड़ को काटने के लिए उसे गर्म करने की आवश्यकता होती है जिसके लिए उनके पास कोयले नहीं थे।जिसके प्राप्ति के लिए पहाड़ काटने के अलावे उन्हें खेतों में भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। उसके बाद शेष बचे हुए समय में पहाड़ काटने का कार्य करते थे।शुरुआत में जब इन्होंने पहाड़ को काटना शुरू किया तो लोगों ने उनके जुनून को पागलपन का नाम दे दिया था।लेकिन वही पागलपन आज उन्हें पर्वत पुरुष के रूप में स्थापित कर दिया।इसलिए मेरा मानना है सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए आप में जुनून और पागलपन होना चाहिए।ऐसा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी का भी मानना था।दुनिया क्या कहती है उस पर नहीं,आपका मन क्या कहता है उस पर गौर करें।अगर आपका काम और नियत सच्चा है तो अनुकूल परिणाम प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता है।यह बात हमें दशरथ मांझी के जीवनी से मालूम चलता है।दशरथ मांझी के कार्य में कई अन्य लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहायता तब की जब लोगों को उनके काम के महत्व और उद्देश्य मालूम चलने लगा।आज श्री दशरथ मांझी के नाम पर उनके गांव में हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध है.बिहार आज “गौतम बुद्ध” के बाद दशरथ मांझी के नाम से जाने जाने लगा है।दशरथ मांझी को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलेगा जब उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाएगा।सादर नमन प्रिया प्रेमी पर्वत पुरुष को!!
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम 

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433