सामाजिक

सत्रिय कथा-रिश्तों की डोर

जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं ।ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है।जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं।
एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए  कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं।
तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है?
उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली ,जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै नाराज न हो जाऊं-नहीं भैया समस्या तो कुछ नहीं है,मगर मैं तो सबसे छोटी हूँ, इसीलिए डरती हूँ।
मैंने उसे समझाया-डरो मत, तुम छोटी हो,तो सबसे ज्यादा लाड़ली भी हो,फिर तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हें इतनी सारी बहनों/भाइयों का मार्गदर्शन और सहयोग मिलेगा। फिर मेरा प्यार, दुलार कभी कम ज्यादा नहीं होगा। तुम्हारे अधिकार हमेशा सुरक्षित रहेंगें।
सच भी है वो मेरे लिए एकदम छोटी बच्ची सरीखी है।ये अलग बात है कि शादीशुदा है,एक बच्चे की माँ है।उसके ससुराल में भी लोग मेरे बारे में जानते हैं।
अब यह ईश्वर की लीला ही तो है कि हमनें एक दूसरे को देखा नहीं, कुछ महीनों पहले एक दूसरे का नाम तक नहीं जानते थे। लेकिन आज उसे उचित सलाह और मार्गदर्शन देकर खुशी होती है,ऐसा लगता है कि ये मेरी जिम्मेदारी है।जिसको मजबूत करती है उसके क्रियाकलाप। अपनी हर छोटी बड़ी बात बताती, पूछती है, हर नये काम से पहले आशीर्वाद लेने के लिए फोन करती है। यही नहीं बहन की तरह जिद भी करती है तो भाई की चिंता परेशान भी रहती है। ऐसा लगता है कितना कुछ जानती है इस अनदेखे भाई के बारे में।
अब इसे समय का तकाजा कहें या उसकी किस्मत कि मेरे संपर्क में आने और मेरे मार्गदर्शन से उसकी स्वीकार्यता और प्रकाश तेजी से बढ़ने लगा। जिसका श्रेय वह ही नहीं उसका परिवार भी मुझे ही देता है।जबकि मैं  जानता हूँ कि ये सब उसके श्रम का परिणाम है।
अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इस रिश्ते की डोर यूँ मजबूत होती रहे और मुझे इतनी आत्मशक्ति दे कि मैं अपनी नन्ही सी लाड़ली बहन को ऊँचाइयों तक पहुंचा सकूँ।
वास्तविकता यह है कि मेरे पास समय कम है और अनेकों आभासी रिश्तों (कुछ उम्र में काफी बड़े अभिभावक सरीखे तो बहुत से छोटे बड़े भाई बहन भी हैं ) की उम्मीदों का केंद्र बिंदु भी मैं ही हूँ लोगों की अपेक्षाएं बहुत हैं। जिसे जाने अनजाने मैंनें ओढ़ रखा है और अब उन अपेक्षाओं को पूरा करना ही मेरा लक्ष्य है। जिसके लिए कोई अदृश्य शक्ति मुझे प्रेरित करती रहती है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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