ग़ज़ल
ज़िंदगी सबको नचा सकती है
ख़्वाब कितने ही दिखा सकती है
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ज़िंदगी का भरोसा क्या करना
हाथ पल भर में छुड़ा सकती है
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खेल जब खेलती है किस्मत तो
रंक राजा को बना सकती है
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आज चिंगारी है लेकिन कल को
आग घर में भी लगा सकती है
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वक्त की चाल बड़ी टेढ़ी है
एक ठोकर से गिरा सकती है
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एक उम्मीद रही जिंदा तो
राह जीने की दिखा सकती है
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अपनी मेहनत पे भरोसा रखना
अर्श पर हमको बिठा सकती है
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क्या जरूरी है ‘रमा’ मैं बोलूँ
हाल ख़ामोशी बता सकती है
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रमा प्रवीर वर्मा