सब ख़रीदा मैंने
सब ख़रीदा मैंने,
कुछ दिनों पहले ही कुड़माई हुई ,
अब तो मेरी बीबी(मां) ने कहा-
‘तैनूँ जो लैंणा ए, लै-लै पुत्तर,
कूदती-फाँदती, ख़ुशबू इत्र सी बन,
कभी इस गली कभी उस गली,
सहेलियों संग क्या -क्या न लिया –
अपनी पसंद का लाल जोड़ा,
सिंदूरी डिबिया,केसरिया चूड़ियाँ,
बिंदी के मैचिंग कई पत्ते,
पटियाला सलवार क़मीज़ें कई,
न जाने और क्या – क्या,
सब अद्भुत -अलग सा था मन में,
कई काम बक़ाया थे,
हाथों में लाल रंग चढ़े,
ऐसी मेंहदी ढूँढ रही थी मेरी आँखें,
तभी किसी दुकान पर चलते रेडियो को सुना,
आतंकियों ने हमारी धरती को रक्त से लाल कर दिया,
अभी चूड़ी का लिफ़ाफ़ा खन्न से गिरा……
तभी कंधे पर किसी ने हाथ रखा,
अंग-अंग डर में सिमट रहा था,
बीबी ने कहा है- घार चल्लो हुँण लोड़ कोई नीं,
ये स्वर सुनकर मैं मुड़ी…
बड़ चली बेजान बुत सी,
पर हाँ सब ख़रीदा मैंने ………।
— भावना ‘मिलन’ अरोरा