हृदय ही स्रोत है
हृदय ही स्रोत है आशा , दया और शान्ति का
हृदयंगम से ही पूर्ण हों हृदय के सम्बोधन स्वर,
प्राक्कलन क्यों हो करते जन्म और मरण का
परमधाम है सदा यहीं मनभावन भूमण्डल पर,
असमंजस कैसा संवेदनाशून्य दर्शनार्थ जगत का
दर्शन दुर्लभ विश्वरूप के घट भीतर ही यथार्थ कर,
हर परिस्थिति में तुम सारतत्व हो अमर्त्य सत्य का
आह्वान निराकार का जो करे निस्संदेह वो ही है नर
— स्वामी दास