कविता
तुमने देखा है क्या कभी
खाली कटोरे में बसंत उतरता हुआ ?
नही — तो
देखो इस गंगा के पानी को
जो अविराम बहता है
इस छोर से उस छोर तक
देखो उस शिवालय को
जो पूजा जाता है अपने निर्गुण रूप में
देखो उस बाती को
जो जलती है , हवा के खिलाफ जाकर भी
महसूस करो उस शँख की प्रतिध्वनि को
जो मात्र कुछ सासों की गर्मी से
सबके कानों से दिल को धड़का देती है
और
बस मन झुक जाता है श्रद्धा से
आंखे बंद कर खुद से मुलाकात के लिए !!
— डॉली