उम्मीद (लघुकथा)
राकेश का तबादला शिमला हो गया। मैं और राकेश अभी -अभी समान के साथ पहुंचे थे ।आते के साथ हमें कामवाली बाई की जरूरत थी। मकान मालिक ने अपनी कामवाली भेज दी, उसने अपना नाम गीता बताया, वो 18-19 साल की दुबली पतली सी लड़की थी।
मैंने सोचा इससे क्या काम होगा, फिर भी मैंने उससे काम के बारे में पूछा उसने हां कर दी। मैंने उसे काम पर रख लिया।वो बड़ चुप-चुप -सी रहती थीं। एक दिन मैंने ही पूछा”पढ़ना-लिखना आता है”उसने नहीं में सर हिलाया , फिर उसने बताया कि वो कभी स्कूल ही नहीं गई, उसके छोटे भाई-बहन स्कूल जाते है और वो कई घरों में काम करती है।न जाने उसे देख कर क्यों लगा कि वो पढ़ना-लिखना चाहती है।जब मैने उससे पूछा मेरे से पढ़ोगी तो वो फ़ौरन तैयार हो गई।
सभी घरों का काम खत्म कर मुझसे पढ़ने लगी। उसमें पढ़ने की बड़ी लगन थी ,जल्द ही उसने पढ़ना-लिखना सीखो लिया। मेरी बेटियों की किताबें उसके काम आ गई।
उसके पढ़ने की चाहत को देखते हुए मैंने उसे 10वीं की प्राइवेट से परीक्षा दिलवाया। वो अच्छे अंक से पास कर गई। उसके बाद उसने मुड़कर नहीं देखा।उसने 12वीं की और कालेज में दाखिला ले लिया। लेकिन मेरे घर का काम नहीं छोड़ा। इस बीच हमारा तबादला जयपुर हो गया। हमलोग जयपुर आ गए लेकिन वो बराबर मुझे फ़ोन करती अपने पढ़ाई के बारे में बताती रहती। कालेज के साथ-साथ उसने कम्प्यूटर का कोर्स कर लिया। बी ए करने के बाद उसे एक गांव के स्कूल में नौकरी मिल गई। उसने बड़ी खुश हो कर इसकी सूचना दी । उसकी खुशी देखकर मुझे भी तसल्ली हुई। आखिरकार एक छोटी-सी उम्मीद ने उसकी दुनिया बदल दी।
— विभा कुमारी “नीरजा”