सेवा और संवेदना
संवेदनशील व्यक्ति के बहुत ही गंभीर होने के साथ ही सामान्य, असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार व्यक्ति के लिए कुछ विशेष नहीं भी कह सकते हैं सेवा और संवेदना को। परंत आज की जरूरत है विचारों ही नहीं भावनाओं के पटों को भी पूरी तरह खोलने की, गँभीरता से सोचने, समझने की, स्व चिंतन की, जीवन में उतारने की, वास्तविकता के धरातल पर महसूस करने की।
सेवा और संवेदना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,बिना संवेदना के सेवा नहीं हो सकती। सेवा का भाव संवेदनशीलता से उपजता है। सेवा तो मन मारकर या जबरन भी अथवा मजबूरी में भी होती है, मगर जब तक उसमें संवेदना न हो,उसका महत्व और लाभ नगण्य होता है। सेवा का महत्व उतना नहीं है जितना संवेदना का। संवेदना दिल से जुड़ी होती है,जिसका व्यापक असर भी होता है। एक चिकित्सक जब किसी मरीज से प्यार भरे अपनत्व लिए मरीज की नब्ज पकड़ता अथवा उसकी परेशानी पूछता है तब मरीज धन्य हो जाता है,उसे लगता है कि उसकी आधी परेशानी तो खत्म ही हो गई।ऐसे मरीजों में दवाओं का असर तेजी से होता है।क्योंकि तब उसमें उस चिकित्सक की मानवीय, आत्मीय संवेदना का भी समावेश होता है और मरीज पर इसका असर साफ दिखता है।कुछ ऐसा ही हमारे घर के बुजुर्गों में भी देखने को मिलता है। सेवा जरूरी है लेकिन संवेदना बहुत जरुरी है।हम अपने बुजुर्गों को प्यार से सहला दें,उनके पास कुछ पल बैठकर बातें करें, उनकी सुनें तो थोड़ी सेवा भी बड़ा काम कर जाती है,मगर हम जब ढेरों सुख सुविधाओं के साथ उन्हें समय तक नहीं देते तब स्थिति अधिक असहनीय बन जाती है। बहुत बार देखने में आता है कि हम सुख सुविधाएं तो उपलब्ध करा देते हैं,परंतु विवशता अथवा घमंड भरी लापरवाही अथवा भाइयों या परिवार की यह सोच कि पैसा भी हम खर्च करें और सेवा भी हमीं करें, के कारण हम आत्मीयता नहीं दिखाते और मन भर की उपेक्षा करते हैं,जिसका परिणाम पीड़ित की स्थिति बिगड़ती जाती है और बहुत बार उसी कुंठा का शिकार होने के कारण लाख सुविधाओं के बाद मृत्यु का कारण बन जाती है।
कहते हैं सेवा शारीरिक कष्ट तो हर सकती है,लेकिन संवेदना मन को सूकून पहुँचाती है। सेवा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सेवा संवेदनाओं का स्थान कभी नहीं ले सकती।क्योंकि संवेदनाओं में ईश्वरीय शक्ति का समावेश जो होता है। संवेदनाओं से मृत्यु की ओर तेजी से बढ़ रहे जीवन में सकारात्मक संकेत भी देखने में आते रहते हैं।
किसी कमजोर, असहाय को सड़क पार करा देना, सड़क दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की मदद कर देना, किसी भूखे को खाना खिला देना, कि प्यासे को पानी पिला देना, किसी बुजुर्ग के पास बैठकर प्यार और अपनापन प्रकट कर देना, किसी दुःखी व्यक्ति के कंधे पर अपनेपन से हाथ रख देना आदि आदि आपको आत्मिक सूकून भी देता है। बस जरूरत है एक बार अपनी संवेदना के बंद दरवाजे खोलने की।बहुत बार सेवा से संवेदना अधिक कारगर साबित होती है। जिसके लिए धनाढ्य होना जरूरी नहीं है।
‘सेवा और संवेदना’ का भाव स्पष्ट है कि हम जिम्मेदार नागरिक होने के अलावा मानव होने के कारण न केवल खुद के बल्कि एक एक व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र की चिंतनशीलता में बदलाव भी लाने की कोशिशों के साथ सामाजिक प्राणी होने के दायित्व का भी निर्वहन करें, लोगों के लिए नजीर पेश करें।
विश्वास कीजिये बहुत बड़ा बदलाव सबके सामने होगा और एक नया वातावरण विकसित होगा। जिसका दूरगामी परिणाम एक एक व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र ही नहीं समूचे संसार में परिलक्षित होगा।
बस जरूरत है एक बार सेवा और संवेदना की गहराई में उतरने की, क्योंकि आनेवाले कल में आपको भी इसी की जरूरत पड़ने वाली है,यह सोच मन अच्छी तरह बिठाने की। तब संवेदनाओं की गंगा हर ओर कल कल करती दिखेगी।