प्यास पे कूप खुदाई
ये तो यही हुई, पानी माँगने पर राजा कहते हैं- कुंआ खोदा जा रहा है । ये माननीय अपने को सेवक नहीं समझते ! लेक्चरर की बहाली में रोज नए नियम जोड़-जोड़ कर समय टाल रहे हैं । मेरा एन ई टी निकाले 9 साल हो गए , 2014 में लेक्चरर का वैकेंसी भरा । तीसरा मुख्यमंत्री और 3-3 शिक्षा मंत्री के अलग – अलग फरमान से उम्र घट रहा है।
बिना लेक्चरर के यूनिवर्सिटी में पढ़ाई से सरकार को लेक्चरर को देने वाले पैसे तो बच रहे हैं । इस राज्य में धड़ाधड़ इंजीनियरिंग संस्थान खोले जा रहे हैं, परंतु वहाँ एक भी लेक्चरर नहीं है ! कैसे ए आई सी टी ई उसे मान्यता दे देते हैं ? बिना लेक्चरर के पास ऐसे बी टेक , जिसे प्रैक्टिकल कुछ भी नहीं आता है, इसे ही गेस्ट लेक्चरर बना कर पॉलिटेक्निक संस्थान को भेजा जाता है।
काफी संख्या में नये-नये विद्यालय खोल लिए , लाखों शिक्षक बहाल कर लिए और उनके नाम दे दिए- नियोजित । उनके 6 माह से वेतन नहीं मिले हैं, कहते है ट्रेजरी में लॉक लगा है । आप जनाब अपने कर्मी वेतन सही समय दे नहीं पाते हैं और गुणवत्तापरक शिक्षा देने की उनसे अपेक्षा रखते हैं ! उस शिक्षक को जो एम ए पास हैं, उनकी जांच जीविका दीदी से करवा रहे हैं यानी विद्वता का कोई प्रोटोकॉल नहीं होता है क्या, राजा साहेब ? लेकिन हम भी मतदाता हैं और हमारे सामने किसी माननीय की हैसियत सेवक की है, स्वामी की नहीं !
भारतीय संविधान को हम भारत के लोग ने अधिनियमित किया है । राजा बनने प्रयास मत कीजिये । राजाओं के ऐसे अहम् उन्हें मान-मर्दन करता है । कोई मुख्यमंत्री राजा है या सेवक ! एक राज्य में बाढ़ ने विकराल रूप धर लिया है और वहाँ के मुख्यमंत्री ने राजा बन प्रधानमन्त्री से कह रहे हैं, गंगा में गाद जमा हो गया है, साफ़ करवाइये, क्योंकि गंगा केंद्र सरकार की वस्तु है। बाढ़ तभी ख़त्म होगा, जब फरक्का बैराज को तोड़ा जाएगा।