युधिष्ठिर पहले ही समझ रहे थे कि अभी कुछ न कुछ अवश्य शेष रह गया है, जिसके लिए मुझे बुलाया गया है। इसलिए उन्होंने पूछा- ”वह क्या तातश्री?“
”वत्स! कई बार राजा को किसी व्यक्ति से बहुत सी ऐसी बातें कहनी पड़ती हैं, जिनको वे अपने अति निकटस्थ व्यक्तियों से भी गोपनीय रखना चाहते हैं। यह दो प्रकार से किया जा सकता है। पहली विधि तो यह है कि वे अपनी सामान्य भाषा के स्थान पर किसी अन्य भाषा में वार्तालाप करें। इससे उस भाषा को न जानने वाले लोग कुछ नहीं समझ पायेंगे, यद्यपि राजा और उस व्यक्ति दोनों को उस भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है। इसमें एक कमी यह भी है कि यदि संयोग से उस भाषा का ज्ञान रखने वाला कोई व्यक्ति अनजाने में आस-पास हुआ, तो वह सारा वार्तालाप समझ लेगा और फिर वह जानकारी गुप्त नहीं रह पाएगी।“
युधिष्ठिर ने सहमति में अपना सिर हिलाया, जैसे सारी बातें समझ रहे हों।
कुछ क्षण बाद विदुर आगे बोले- ”दूसरी विधि यह है कि दोनों अपनी सामान्य भाषा में ही कूट शब्दों में वार्तालाप करें। इससे निकटस्थ व्यक्ति उनका सारा वार्तालाप समझते हुए भी उसका वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाएगा और भ्रम में पड़ जाएगा। इससे वार्तालाप का मूल सन्देश गोपनीय बना रहेगा।“
युधिष्ठिर ने फिर अपना सिर हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
”वत्स युधिष्ठिर! अब मैं तुम्हें इसी कूट भाषा की शिक्षा दूँगा।“
”जो आज्ञा पितृव्य! मैं इसके लिए प्रस्तुत हूँ।“
”वत्स! कूट भाषा में कई शब्दों का अर्थ वह नहीं होता, जो सभी समझते हैं। जैसे इस भाषा में ‘अश्व’ शब्द का अर्थ होता है मनुष्य! ‘गौ’ शब्द का अर्थ होता है स्त्री। इसी तरह अन्य कई शब्दों के नये अर्थ निश्चित किये जाते हैं। इन शब्दों के साथ जो क्रियायें होती हैं, उनके भी नये अर्थ समझे जाते हैं। जैसे अश्व को खरीदने का अर्थ है ‘शत्रु के किसी व्यक्ति को अपनी ओर मिला लेना’ और अश्व को बेचने का अर्थ है ‘किसी व्यक्ति को मृत्यु देना अथवा उसके प्राण ले लेना’। इसी प्रकार कई शब्दों और क्रियाओं के कूट अर्थ निश्चित कर लिये जाते हैं।“
युधिष्ठिर बहुत ध्यानपूर्वक उनकी बातें सुन रहे थे और अपना सिर हिलाते जा रहे थे, जैसे सब समझ रहे हों। जब विदुर रुक गये और कुछ क्षण तक उन्होंने कुछ नहीं कहा, तो युधिष्ठिर ने जिज्ञासा व्यक्त की- ”पितृव्य! यह कैसे ज्ञात होगा कि कब वे सामान्य भाषा में वार्तालाप कर रहे हैं और कब कूट भाषा का उपयोग कर रहे हैं?”
विदुर मुस्कराये। ”तुम्हारी जिज्ञासा उचित है, वत्स! जब दोनों में से कोई व्यक्ति कूट भाषा में वार्तालाप करना चाहता है, तो वह प्रारम्भ में एक ऐसा वाक्य बोलता है, जिसका अर्थ होता है कि अब हम कूट भाषा में वार्तालाप करेंगे। यह वाक्य पहले से निश्चित कर लिया जाता है। वह वाक्य सुनते ही दूसरे व्यक्ति को संकेत मिल जाता है कि अब हमें कूट भाषा का ही उपयोग करना है। इसी प्रकार कूट भाषा का वार्तालाप समाप्त करके सामान्य भाषा का वार्तालाप प्रारम्भ करने के लिए भी एक वाक्य निश्चित कर लिया जाता है।”
यह कहकर विदुर फिर कुछ क्षण रुके और युधिष्ठिर के ऊपर पड़ रहे अपने कथन के प्रभाव का अनुमान लगाया। युधिष्ठिर का सिर सहमति में हिल रहा था, लेकिन उनके हाव-भाव से लग रहा था कि वे अभी कुछ और सुनना चाहते हैं।
विदुर आगे बोले- ”उदाहरण के लिए वे आपस में यह वाक्य कूट भाषा प्रारम्भ करने के लिए निश्चित कर सकते हैं- ‘आज मौसम का पूर्वानुमान क्या है?’ यह वाक्य सुनते ही सामने वाला व्यक्ति सावधान हो जाता है और कूट भाषा में वार्तालाप शुरू कर देता है। इसी प्रकार इस भाषा के वार्तालाप को समाप्त करने के लिए यह वाक्य निश्चित किया जा सकता है- ‘आज मौसम का पूर्वानुमान अच्छा है।’ इससे वार्तालाप सामान्य भाषा में पुनः प्रारम्भ हो जाता है।“
”मैं भली प्रकार समझ गया, पितृव्य!“ युधिष्ठिर ने अपना मौन तोड़ा। यह सुनकर विदुर बहुत प्रसन्न हुए।
फिर उन्होंने लगभग दो माह तक युधिष्ठिर को कूट भाषा की विस्तृत शिक्षा दी और उसमें वार्तालाप करने का अच्छा अभ्यास करा दिया, ताकि वे सभी आवश्यक विषयों पर उस भाषा में गोपनीय वार्तालाप कर सकें। उनके बीच कूट भाषा में वार्तालाप प्रारम्भ करने और उस वार्तालाप को समाप्त करने का संकेत करने वाले कूट वाक्य भी निश्चित कर लिये गये।
विशेष शिक्षा पूर्ण हो जाने के बाद विदुर ने युधिष्ठिर से कह दिया कि अब यहाँ नित्य आने की आवश्यकता नहीं है, कोई आवश्यकता पड़ने पर अवश्य आयें अथवा मुझको संदेश भेज दें।