ग़ज़ल
इस अंधेरी रात में कोई दिया जलता तो है
कोई है जो साथ साये की तरह चलता तो है
आज भी कुछ लाल गुदड़ी के नजर आते तो हैं
ख्वाब पलकों पे सुहाना आज भी पलता तो है
आप तो कहते थे ‘कुछ होना नहीं सब व्यर्थ है’
सबने देखा सच के आगे झूठ भी गलता तो है
झूठ का अहसास नजरों में अगर चुभ जाये तो
आँख अपनी जिन्दगीभर आदमी मलता तो है
आप बेशक सत्य को ता उम्र झुठलाते रहें
झूठ लेकिन आपको हर मोड़ पे छलता तो है
चढ़ते सूरज की सभी करते हैं पूजा विश्व में
‘शान्त’ झूठे यश में फूला चन्द्रमा ढलता तो है
— इं. देवकी नन्दन ‘शान्त’