कविता

उसूलों के सिक्के

उसूलों के सिक्कों का
कोई मोल नहीं है
आज के बाज़ार में
जैसे चवन्नी-अठन्नी
नहीं चलते—–
किसी भी व्यापार में!
मूल्यों को ढोने वाले
रूसवा होते हैं संसार में
पल-पल रंग बदलने वाले
ही कामयाब होते हैं
इस मतलबी संसार में!
बेमाईनी फरेब जालसाजी
करने वाले का रुतबा है
इस सभ्य समाज में
उसूलों वाले कौड़ियों के मोल
बिकते हैं संसार में!
अहम अहंकार स्वार्थ
से ही शोभा होती है
आज के इंसान की
स्वाभिमान परोपकार सज्जनता
बस साथी है—
कमजोर इंसान की!
स्वार्थों की पटरी पर
दौड़ते हैं सारे रिश्ते-नाते
बस पैसा ही भगवान है
आज के इंसान की!
दान-धर्म जात-पात पाप-पुण्य
सब ढकोसले है
इस मतलबी जहान के!
क्या हैसियत है?
आज के दौर में आमइंसान की—
जब भगवान भी भेंट चढ़ जाते हैं
सत्ताधारीयों के निजी स्वार्थ की
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P