कविता

अनुशासन

वो
थोड़ा
अधीर
है,मगर
अनुशासन
में ही रहता है
शायद डरता है।
***
ये
कैसा
बंधन
टूटे न
कोशिश के
बाद भी बाधा
अनुशासित है
लेकिन कब तक।
***
जो
डरा
समझो
मरा,सीख
लो, सख्त बनो
अनुशासन में
रहो, डरना कैसा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921