क्षणिकाएँ
1.
नाज़ुक टहनी
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हम सपने बीनते रहे
जो टूटकर गिरे थे
आसमान की शाखों से
जिसे बुनकर हम ओढ़ा आए थे
आसमान को कभी
ज़रा-सी धूप हवा पानी के वास्ते,
आसमान की नाज़ुक टहनी
सँभाल न सकी थी
मेरे सपनों को।
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2.
हदबन्दी
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मन की हदबन्दी, ख़ुद की मैंने
मन की हदबन्दी, ख़ुद की मैंने
जिस्म की हदबन्दी, ज़माने ने सिखाई
कुल मिलाकर हासिल – अकेलापन
परिणाम – जीवन की हदबन्दी
जो तब टूटेगी जब साँसें टूटेगी
और टूट जाएँगे वे तमाम हद
जो जन्म के साथ हमारी जात को
पूरी निगरानी के साथ
तोहफ़े में मिलते हैं।
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3.
नियंत्रण
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भावनाएँ और संवेदनाएँ
अपनी राह से भटक चुकी हैं
अब शब्दों में पनाह नहीं लेती
आँखों में घर कर चुकी है
कभी बदली बन तैरती है
कभी बारिश बन बरसती है,
बेअख्तियार हूँ
वक़्त, रिश्ते और ख़ुद पर
हर नियंत्रण खो चुकी हूँ।
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4.
इन्कार
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मेरी ख़ामोशियाँ
चीखकर मुझे बुलाती हैं
सन्नाटे के कोलाहल से
व्यथित मेरा मन
ख़ुद तक पहुँचने से इन्कार कर रहा
नहीं चाहता, कुछ भी मुझ तक पहुँचे।
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5.
लम्बी ज़िन्दगी
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यह दर्द ठहरता क्यों नहीं?
मुझसे ज़्यादा लम्बी ज़िन्दगी
शायद दर्द को मिली है।
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6.
ताकीद
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बढ़ती उम्र ने ताकीद की
वक़्त गुज़र रहा है
पर जाने क्यों ठहरा हुआ सा लगता है
सिर्फ मैं दौड़ती हूँ
अकेली भागती हूँ
चलो, तुम भी दौड़ो मेरे साथ
मेरे बिना तुम कहाँ?
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7.
मीठी
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मैं इतनी मीठी बन गई
कि मेरी नसों में मिठास भर गई
और ज़िन्दगी तल्ख़ हो गई।
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8.
नींद
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सपने आकार द्वार खटखटाते
नींद न जाने किधर चल देती
सारी दुनिया की सैर कर आती
मुझसे नज़रें रोज़ चुराती
न दवा की सुनती न मिन्नतें सुनती
अहंकारी नींद
जब मर्ज़ी तब ही आती
सपनो से मैं मिल ना पाती।
– जेन्नी शबनम (1. 9. 2021)
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