कविता

पेड़ और लकडहारा

क्यों काटे तूने पेड़ लकडहारे
ये पेड़ तो हर मन को प्यारे।।
वृक्ष तो होता धरा का भूषण है
इससे दूर रहता सदा प्रदूषण है।।
बच्ची बोली,
बच्ची बोली लकडहारे तुम !निराले
कोई लगाये काटे धृत मन काले।।
आँखों भाते हरियाली लाते हैं वृक्ष
प्राण वायु हर पल ये देने में दक्ष।।
बिना स्वार्थ सब ये देते उपकारी
मानव तो काटने में अत्याचारी।।
कितनी भूमि बिन इसके है उर्वर,
शेष नैतिकता विश्वास से निर्भर ।।
वृक्षों से जो कुछ भी हमने पाया,
उसने हमीं पे सब दान बन लाया ।।
बिना पेड़ क्या कोई जीवन संभव,
समझ न पाता क्यों?ये असम्भव।।
सूरज की किरणों में तपकर राही ,
वायु और ठंडी छाँव वर्षों मनचाही ।।
पेड़ तो व्यक्त नहीं होता कभी ,
लकडहारे तूने धरा मुक्त की नमी ।
शिक्षा में मालुम दैनिक ज्ञात नहीं
उसकी चोट प्रकृति बन अघात रही।
अब तुम पेड़ न काटने प्रण लो जान
कोई और तरीके कमाई से घर मान.
— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]