कविता

संदूकों में बचपन

संदूकें अब तक ना खोलीं जिनमे था मेरा पूरा बचपन I
जिनमे थे गुड्डे और गुड़िया, हर कोने खुशियों कि पुड़िया I
जिनमे थे साबू और राका, बड़ी योजना छोटा खाका I
जिनमे थी कागज की नाव भी, चलती थी जो बिन बहाव भी I
जिनमे था लट्टू और कंचा, ना छल था ना कोई प्रपंचा I
जिनमे था गुल्लक एक टूटा, पैसा कम पर दंभ ना झूठा I
जिनमे थे कुछ गेंदें पुरानी, रोज का खेला नई कहानी I
जिनमे थी कुछ फटी पतंगें, हम भी उड़ते मस्त मलंगे I
जिनमे थे पिट्ठू के पत्थर, साधन कम पर खुशियां दम भर I
संदूकों को खोल रहा हूँ, बचपन को अब बोल रहा हूँ I
संदूकें ना बंद करूंगा, खुशियों का प्रबंध करूंगा I
छोटी हों या बड़ी हो खुशियां, अब उनमें ना लगेगा ताला I
संदूकें अब खुलीं रहेंगी, हँसेगा बचपन भोला-भाला I

— गगन मेहता

गगन मेहता

अपने लेखन की औपचारिक शुरुआत 2016-17 से की I वर्ष 2017 में इनकी पहली किताब “सफलता सप्तक” आने के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी में कविताएं लिखनी जारी रखी और राँची, झारखंड के अलग-अलग मंचों में अपने कविताओं की सफल प्रस्तुति भी देते रहे I वर्ष 2020 में इंदु तोमर द्वारा संपादित हिन्दी कविताओं के संकलन “संकल्प” में इनकी कविता “जब भी कोई संकल्प करूँ” प्रकाशित हुई तथा उसी वर्ष स्वाध्या पब्लिकैशन की इंग्लिश बुक “स्वाध्या बेस्ट माइक्रो स्टोरीस” के बेस्ट 50 स्टोरीस में जगह बनाते हुए इनकी लिखी अंग्रेजी कहानी “री-टर्न गिफ्ट” प्रकाशित हुई I फिलहाल अपनी गृहनगरी रांची में एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था में कार्यरत हैं, साथ ही, गायन और स्टैन्ड अप कॉमेडी कार्यक्रमों में भी शिरकत करते हैं I इनकी दूसरी पुस्तक “सतरंगी रे” जल्द ही प्रकाशित होने वाली है I पता – रांची, झारखंड, मोबाईल- 9911866809, email- [email protected]