फ़ुरसत ही जब नही मिलती – दुनियावी मजबूरियों से
तो सोचूं किस तरा से मैं – अपने आप ही के बारे मों
क़ैद हो कर रैह गया हूं मैं – अपनी यादों के क़फ़स में
छुटकारा कैसे पाओूं मैं – अपन दिल की बे चैनियों से
—
फ़रयाद कर नही सकता – घुट घुट कर जी रहा हूं तनहाई में
आबाद कैसे अब करूं मैं – अपनी ज़िनदगी की वीरानियों को
बहाने रोने के ढ़ूंडती रैहती हैं – यिह बे चैन आँखें हमारी
क़ाबू में किस तरा लाओूं मैं – अपनी तडपती हुई यादों को
—
ख़वाब बे शक टुटते जा रहे हैं – मेरी ख़शहाल ज़िनदगी के
ज़िनदा फिर भी कियूं ना रखूं मैं – अपने बुलंद हौसलों को
पूछता बेशक नही है अब कोई भी – हाल मेरे बे चैन दिल का
कैसे फिर भी कैह दूं अब मै कि – बे चैन अब मेरा दिल नही है
—-
ख़वाब सुहाने अब मेरे दिल के – यूं ही सजे रैहने दो — मदन —
गुमान भी हमारे नादान दिल के – अब यूं ही बने रैहने दो
मिल बे शक सकता नही मैं – चाहता है जब भी दिल मेरा
याद फिर भी कियूं ना करूृ मैं – क्या यिह हक़ मेरे दिल का नही है