उपन्यास अंश

लघु उपन्यास: षड्यन्त्र (कड़ी 8 )

उधर गुप्तचरों द्वारा विदुर को जनभावनाओं की पूरी सूचना मिल रही थी। युधिष्ठिर की शिक्षा पूर्ण हुए एक वर्ष से अधिक हो चला था, लेकिन अभी तक उनको युवराज घोषित नहीं किया गया था, यह बात सामान्य जन को खल रही थी। एक दिन विदुर स्वयं साधारण वेष में गुप्त रूप से नगर में भ्रमण करने निकले, तो उन्हें इन भावनाओं की पुष्टि करने वाली बातें सुनने को मिलीं।
”ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर को अब युवराज बना दिया जाना चाहिए।“ एक नागरिक ने कहा।
”मुझे तो आश्चर्य है कि अभी तक ऐसा क्यों नहीं किया गया है।“ दूसरे नागरिक ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।
”कहीं ऐसा तो नहीं है कि महाराज के मन में कुछ और विचार पल रहे हों और वे युधिष्ठिर को सिंहासन न देना चाहते हों?“ तीसरे नागरिक ने शंका प्रकट की।
इस पर पहला नागरिक बोला- ”यह पूरी तरह सम्भव है। गांधार राज शकुनि उनके निकट ही बने रहते हैं, वे कभी नहीं चाहेंगे कि युधिष्ठिर राजा हों। उनके लिए तो उनके राजकुमार दुर्योधन ही सब कुछ हैं।“
”सत्य कहा भाई! महाराज भी अन्य लोगों की बात कम सुनते हैं, शकुनि की बात पर ही अधिक ध्यान देते हैं। सुना है कि वे महामंत्री विदुर पर भी पूरा विश्वास नहीं करते।“
एक नागरिक के मुँह से यह सुनकर विदुर को बहुत आश्चर्य हुआ। वे समझ गये कि राजपरिवार की सभी बातें छन-छनकर अन्ततः नागरिकों तक पहुँच ही जाती हैं और उनको किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता, क्योंकि राजपरिवार के बहुत से कार्यों के लिए सामान्य लोगों को बुलाया जाता है और उनके माध्यम से ही ऐसी बातें बाहर फैलती हैं।
”राजकुमार दुर्योधन और उनके भाइयों द्वारा नगर में बहुत मनमानी की जाती है, बहुत से नागरिक उनसे पीड़ित हैं। वे जब चाहें किसी भी व्यवसायी का सामान बिना उसका मूल्य दिये ले जाते हैं और असहाय व्यवसायी मन मसोसकर रह जाता है। युधिष्ठिर युवराज हो जायेंगे, तो दुर्योधन के भाइयों पर कुछ तो रोक लगेगी।“
यह एक अन्य नागरिक का कथन था, जिसको छद्मवेष में विदुर ने आश्चर्यपूर्वक सुना। उनको विश्वास हो गया कि उनके गुप्तचरों द्वारा उनके पास ऐसी जो सूचनायें पहुँचायी जाती हैं, वे पूरी तरह सत्य हैं।
विदुर सोच रहे थे कि युधिष्ठिर का प्रशिक्षण पूरा हो जाने के बाद शीघ्र से शीघ्र उनको युवराज पद सौंप देना चाहिए। अब इसमें देरी करने का कोई कारण नहीं है, नहीं तो नगर में असन्तोष बढ़ता जाएगा, जो राज्य की छवि के लिए अच्छा नहीं होगा।
इसका एक कारण यह भी था कि वे जानते थे कि शकुनि किसी भी तरह दुर्योधन को युवराज पद पर लाने का उद्योग कर रहा है। वह युधिष्ठिर को बिल्कुल नहीं चाहता। यदि उसने महाराज को बहकाकर ऐसा कोई निर्णय करा लिया, तो बहुत विपरीत परिस्थिति उत्पन्न हो जाएगी। इसलिए इस सम्भावना को समाप्त करने के लिए शीघ्र से शीघ्र युधिष्ठिर का अभिषेक युवराज पद पर हो जाना चाहिए। यही राज्य के हित में होगा।
इसलिए महामंत्री विदुर ने इस विषय पर पितामह से चर्चा करने का निश्चय कर लिया, क्योंकि राजसभा में औपचारिक चर्चा करने से पहले वे पितामह को अपने विश्वास में लेना चाहते थे। यह विचार करके अगले दिन उन्होंने पितामह भीष्म से मिलने आने की सूचना भेज दी और निर्धारित समय पर मिलने पहुँच गये।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]