गिरिजा के ललन
हर काज में होवे तुम्हरा मनन ,
शंकर के सुत गिरिजा के ललन।
तुम्हरे सुमिरन टल जाए विघन ,
शंकर के सुत गिरिजा के ललन।
जो तुम्हें पुकारें गज आनन,
रिद्धि सिद्धि से भरदें दामन,
हर लेते सारे दुःख चिंतन ।
शंकर के सुत गिरिजा के ललन।
पितु मात को माना जग से बड़ा,
जग हांथ जोड़ के झुका खड़ा,
सब करने लगे प्रथम पूजन ।
शंकर के सुत गिरिजा के ललन।
बल बुद्धि विवेक से तुम हो भरे,
पल में असुरों का नाश करें ,
घर घर में गूंजे तुम्हरे भजन।
शंकर के सुत गिरिजा के ललन।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”