कविता

हिंदी अनिवार्य हो

बहुत हो चुका अब
गुमराह करना बंद करो,
आजादी के चौहत्तर साल बाद भी
हिंदी की दुहाई दे रहे हो,
लुका छिपी का बच्चों जैसा
खेल खेल रहे हो,
हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह
हिंदी पखवाड़ा मना कर
कौन सा ओलंपिक पदक जीत रहे हो?
अरे अब तो आँखे खोलो
समूचे राष्ट्र के लिए हिंदी की
अनिवार्यता की राह तो खोलो,
हिंदी को राजभाषा की जंजीर से
अब बस आजाद ही करो,
हिंदी को राष्ट्रभाषा बन गई
बस इस ऐलान के लिए भी
कम से अपना मुँह तो खोलो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921