कविता

ज़िंदगी एक सफ़र है

ज़िंदगी एक सफ़र है, जिसपे हम बराबर चलते हैं।
पर एक मोड़ पे रुकना पड़ेगा, क्या कोई यहाँ अमर है?
कल मैं चलूँ या तू चले, इस बात को है किसे पता।
फिर मुँह फुलाके क्यों बैठी है, बता तो दे मेरा क्या ख़ता।
तेरी आँखों की नमी को, बदलूँगा मैं मीठी बातों में।
ज़रा हिम्मत तो दे मुझे, घबराता दिल तेरी निगाहों से।
सुना था मैंने, गुलाबों में काँटें भी बहुत हैं।
पर यकीन आज ही आयी, देखके तेरी शक्ल पे रोष है।
आइसक्रीम को जब-तक कवर से न ढका हो, तब-तक अच्छा नहीं लगता।
तेरी शक्ल से नाराज़गी न उतरे, तब-तक बातें करने का मन नहीं करता।
फिर कभी मिलें या न मिलें, यकीन के साथ कह नहीं सकता।
लो आज के लिए मैं रुक गया, मैं हूँ तुझपे फ़िदा हो गया तेरा बंदा।।

— कलणि वि. पनागाॅड

कलणि वि. पनागॉड

B.A. in Hindi (SP) (USJP-Sri Lanka), PG Dip. in Hindi (KHS-Agra) श्री लंका में जन्मे सिंहली मातृभाषा भाषी एक आधुनिक कवयित्री है, जिसे अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा से भी बहुत लगाव है। श्री लंका के श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विशेषवेदी उपाधि प्राप्त की उसने केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा से हिंदी स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी पा ली है। वह श्री लंका में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश करती रहती है।