दूसरे पर दोष मढ़ना शग़ल हो गई हमारी
ये लड़कियाँ और लड़के
‘रंग’ देखकर ही प्यार करते हैं,
फिर भी हम और संविधान
जोर देकर कहते हैं-
भारत में रंगभेद नहीं है !
‘सुख’ तो ‘शारीरिक’ ही होती है,
‘मानसिक’ तो ‘संतोष’ होती है
और गरीब व्यक्ति
मन मसोसकर रह जाते हैं
कि उनके लिए
‘संतोष’ ही परम धन है !
प्यार है फ़ख़त,
पानी के बुलबुले !
देखने में सुंदर,
पर छुओ तो खतम..
कवि पूर्व प्रधानमंत्री
वी पी सिंह कहिन।
अब जब-जब होती बारिश,
गाँवों में भी तबाही मचाती !
और शहर में वो आकर तो
गंदगी ही फैलाती !
बारिश और रुमानियत
साथ-साथ,
सूरज को
रोज-रोज देख ही लिए,
पर ‘इंद्रधनुष’ देखे –
बरसों हो गए !
हम मसीहा नहीं हैं,
मसिजीवी हैं !
महिलाएं ‘फॅमिनिज़्म’ की
बात करेंगी,
किन्तु अधिकांश महिलाएं
पिता और पति के नाम-उपनाम
चस्पाए रखेंगी !
कहने पर कहेंगी-
ये नारीविरोधी !
लोग दूसरे की सुंदरता को
अपनी नजरों से देखते हैं !
पर खुद की सुंदरता को
निर्जीव वस्तु ‘आईना’ के सहारे
सिर्फ़ निहार ही सकते हैं !
दोषी स्वयं हैं हम !
दूसरे पर दोष मढ़ना
शग़ल हो गई है हमारी
यानी हम भी हैं हरामखोर !