मत रोको गंगा की धारा
मत रोको गंगा की धारा, अविरल बहने दो।
उर की सारी पीड़ा खुशियां, कल-कल कहने दो।
केवल नदी नहीं है गंगा, अपनी थाती है।
युग-युग से पुरखों की पढ़ती आई पाती है।
घाटों में इतिहास सुरक्षित, हलचल रहने दो।
संस्कृति की संवाहक गंगा, जीवन का राग भरे।
सृजन प्रलय के तटबंध बीच, बहती आग भरे।
सुरसरि है शुभ श्वास हमारी, कलरव करने दो।।
पोषण मुक्ति प्रदाता गंगा, जन विश्वास लिए।
उर भरती हैं उत्साह प्रबल, नव आकाश लिए।
वक्षस्थल पर वार मशीनी, अब मत सहने दो।।
— प्रमोद दीक्षित मलय